चित्तौड़गढ़ इन दिनों आवारा कुत्तों की बढ़ती आक्रामकता से जूझ रहा है, जिससे शहर का जनजीवन भय के माहौल में गुजर रहा है। मोहल्लों की गलियों से लेकर मुख्य सड़कों तक कुत्तों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं और सबसे ज्यादा निशाना वे लोग बन रहे हैं जो खुद को जल्दी नहीं बचा पाते—महिलाएं, बुजुर्ग और छोटे बच्चे।
हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा जिला अस्पताल में दर्ज डॉग बाइट के आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जो इस समस्या की तीव्रता की साफ तस्वीर पेश करते हैं।
हर दिन 8 से ज्यादा लोग बन रहे शिकार
जिला अस्पताल से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ नवंबर के पहले 24 दिनों में ही करीब 200 लोग आवारा कुत्तों के हमलों का शिकार बनकर गंभीर चोटों के साथ अस्पताल पहुंचे।
यह स्थिति दर्शाती है कि शहर में हर दिन औसतन आठ से अधिक लोग डॉग बाइट का सामना कर रहे हैं। सबसे भयावह दिन 21 नवंबर रहा, जब शास्त्री नगर चौराहे के आसपास आवारा कुत्तों ने एक ही दिन में 21 लोगों पर हमला कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया। इन घटनाओं ने चित्तौड़गढ़ में दहशत और असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है।
‘पेट, मुंह, गले पर हमला, 4 से 5 टांके तक लगाने पड़े’
चित्तौड़गढ़ जिला अस्पताल के डॉ. जयप्रकाश कुलदीप ने NDTV से बातचीत में बताया कि इमरजेंसी वार्ड में पहुंचने वाले कई मरीजों को गंभीर चोटें आई हैं। कुछ मामलों में कुत्तों ने लोगों के पेट, चेहरे और यहां तक कि गले पर भी गहरे घाव कर दिए,
जिनमें से कई को 4–5 टांके लगाने पड़े। डॉक्टर का कहना है कि ये आंकड़े सिर्फ अस्पताल की इमरजेंसी में दर्ज मरीजों के हैं, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
हमला इतना भयानक कि राहगीर जमीन पर गिरे
पीड़ितों का कहना है कि शहर में आवारा कुत्तों का व्यवहार इतना आक्रामक हो गया है कि वे अचानक राहगीरों को घेरकर हमला कर देते हैं। कई घटनाओं में कुत्तों ने लोगों को सड़क पर गिरा दिया, जिससे गंभीर चोटें आईं।
पुराने शहर सहित कई इलाकों में ये कुत्ते दुपहिया वाहन चालकों और साइकिल सवारों के पीछे भी दौड़ पड़ते हैं, जिससे संतुलन बिगड़ने पर लोग गिरकर घायल हो जाते हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि हालात ऐसे हो गए हैं कि हर समय जान का खतरा महसूस होता है।
नींद में सोया प्रशासन! टेंडर नहीं, शेल्टर होम नहीं
गंभीर और लगातार हो रहे इन हमलों के बावजूद शहर का प्रशासन और नगर परिषद हालात को लेकर उदासीन दिखाई दे रहे हैं, जिससे लोगों में भारी नाराजगी है।
नागरिकों का कहना है कि परिषद ने न तो अभी तक आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए कोई टेंडर जारी किया है और न ही इनके लिए किसी शेल्टर की व्यवस्था मौजूद है। प्रशासन की यह लापरवाही समस्या को और भयावह बना रही है।
चित्तौड़गढ़ शहर में करीब 4500 आवारा कुत्ते
नगर परिषद के आंकड़ों के अनुसार शहर में करीब साढ़े चार हजार आवारा कुत्ते मौजूद हैं। वर्ष 2022 में इनमें से 3030 कुत्तों की नसबंदी कराई गई थी, लेकिन वर्तमान स्थिति साफ दिखाती है कि यह कदम पर्याप्त नहीं था।
स्थानीय निवासियों ने कई बार अधिकारियों और प्रशासक रामचंद्र खटीक को समस्या से अवगत कराया, जिसके बाद परिषद की टीमें कुछ इलाकों में तो पहुंचीं, लेकिन लगातार आक्रामक हो चुके इन कुत्तों को पकड़ने में वे सफल नहीं हो सकीं।
‘नगर परिषद जारी करेगा 30 लाख रुपये का टेंडर’
मामला सुर्खियों में आने के बाद चित्तौड़गढ़ नगर परिषद के राजस्व अधिकारी कमलेन्द्र प्रताप सिंह ने NDTV से कहा कि करीब 30 लाख रुपये की टेंडर प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है
कि इतने गंभीर हालात और सैकड़ों लोगों के घायल होने के बाद ही प्रशासन सक्रिय क्यों होता है? शहरवासी पूछ रहे हैं कि जिम्मेदार अधिकारी समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं करते और समस्या को इस स्तर तक बढ़ने क्यों दिया गया।
पिछले तीन महीनों के भयावह आंकड़े (सितंबर से नवंबर 2025)
जिला अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि आवारा कुत्तों के हमलों की समस्या अचानक नहीं आई, बल्कि महीनों से लगातार गंभीर होती जा रही है। सितंबर में गंभीर डॉग बाइट्स के 28 मामले दर्ज हुए, अक्टूबर में यह संख्या बढ़कर 45 हो गई,
और नवंबर के पहले 24 दिनों में ही इमरजेंसी में 129 गंभीर मामले सामने आए। इन आंकड़ों से प्रशासन की लगातार हो रही लापरवाही उजागर होती है। शहरवासी अब तुरंत और ठोस कदम की उम्मीद कर रहे हैं, ताकि वे इस ‘डॉग टेरर’ से निजात पा सकें और चित्तौड़गढ़ में सुरक्षित महसूस कर सकें।
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