राजस्थान में एक बार फिर गुर्जर आंदोलन की गूंज है. इस आंदोलन की मांग के केंद्र में है – समाज को मिलने वाला आरक्षण. यह आरक्षण MBC समाज की शक्ल में मिलता है, जिसमें गुर्जर समेत 5 जातियां हैं. साल 2019 में राजस्थान में गुर्जर समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 5 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित हुआ. गुर्जरों की चिंता यह है कि ओबीसी आरक्षण में उन्हें लाभ नहीं मिला, जिसके चलते अति पिछड़ा वर्ग यानी MBC की डिमांड हुई, जो पूरी भी हुई. अब मुद्दा इसे केंद्र की 5वीं सूची में शामिल करवाने का है.
राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन विधेयक, 2019 के तहत राज्य में 5 अति पिछड़ी जातियों बंजारा, गाड़िया लोहार, गुर्जर, गडरिया और रेबारी (देवासी और रायका समेत) को शामिल किया गया. लेकिन गुर्जर को छोड़कर अन्य 4 जातियों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व और प्रशासनक में मजबूत आवाज भी नहीं दिखाई पड़ती है. रेबारी को तो फिर भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व का मौका कभी- कभी मिला, लेकिन लोहार, बंजारा और गड़रिया समाज का कोई नुमाइंदा बड़े पदों पर नहीं है.
हालांकि, इन तर्कों के बावजूद गुर्जरों का दावा कमजोर नहीं कहा जा सकता. लेकिन यह भी साफ है कि MBC आरक्षण का लाभ समान रूप से सभी पात्र जातियों को नहीं मिला, जिससे सामाजिक असंतुलन बढ़ा.
MBC की तमाम जातियों का गणित समझिए
कांग्रेस में सचिन पायलट की शक्ल में गुर्जर को छोड़कर अन्य MBC जातियां (देव, रावत, रायका) हाशिए पर ही रहीं. इस असंतुलन के चलते एमबीसी का एक बड़ा वोट बीजेपी के पाले में गया. प्रदेश की 200 में से करीब 75 विधानसभा सीटों पर एमबीसी समाज निर्णायक भूमिका में हैं. धौलपुर के एक कोने से लेकर बाड़मेर बॉर्डर तक लगते जिलों में 37 फीसदी सीटें ऐसी है, जहां भले ही उम्मीदवार किसी भी समाज से हो, एमबीसी समाज का वोट बेहद जरूरी हो जाता है. दावा भी किया जाता है कि इन 75 सीटों पर समाज के 37 हजार से 78 हजार वोट है. ये वोट जिनके खाते में जाए, उनके लिए राह आसान हो सकती है.
बैंसला जैसे चेहरों के सहारे पूर्वी राजस्थान में बीजेपी ने बढ़त बनाई, वही बने मुसीबत
अब बात गुर्जर आरक्षण आंदोलन और उससे समीकरण की करते हैं. साल 2023 के विधानसभा चुनाव में BJP ने 115 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 69 सीटें मिलीं. गुर्जर समाज की प्रभाव वाली कुछ सीटों पर बीजेपी ने समाज के लोगों को मौका दिया, जिसमें विजय बैंसला की उम्मीदवारी वाली देवली-उनियारा सीट भी शामिल है. भले ही इनमें कुछ सीटें बीजेपी हार गई. लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मतभेद से नाराज गुर्जर समाज को साधने के लिए बीजेपी की रणनीति यह कारगर रही और पूर्वी राजस्थान में बीजेपी को बढ़त मिली. पिछले साल उपचुनाव में विजय बैंसला का टिकट काटकर समाज के एक धड़े से बीजेपी ने फिर से नाराजगी मोल ली, हालांकि टिकट राजेंद्र गुर्जर को ही मिला.
यह बैंसला का गुट है या समाज का, कल ही पता चलेगा
राजनीतिक तौर पर विजय बैंसला अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं रहे, इसलिए एक बार फिर समाज की एक लंबी जाजम बिछाने की तैयारी है. क्योंकि गृह राज्यमंत्री जवाहर सिंह बेढम हो या विधायकों की संख्या, बीजेपी में गुर्जर समाज का पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी नजर आता है. ऐसे में समाज के मुद्दों के जरिए बैंसला कितनी आवाज बुलंद कर पाएंगे, ये देखने वाली बात है. क्योंकि कल (8 जून) इसी से तय होगा कि यह आंदोलन समाज का आंदोलन है या बैंसला गुट का.