आज (8 जून) राजस्थान में गुर्जरों की महापंचायत का आह्वान भले ही सामाजिक मुद्दों की वजह से हो. लेकिन यह असल में जंग है गुर्जर समाज की जाजम पर दावा ठोंकने की. पिता कर्नल किरोड़ी बैंसला की राह पकड़ते चल रहे उनके बेटे विजय बैंसला राजनीतिक तौर पर सफल नहीं हो पाए हैं. बीजेपी ने साल 2023 में मौका भी दिया, लेकिन चुनावी हार के बाद पार्टी ने उन्हें ना तो संगठन में जिम्मा दिया और ना ही उपचुनाव में. हालांकि वह लोकसभा चुनाव-2024 में भी टिकट की मांग कर रहे थे. दूसरी ओर, जवाहर सिंह बेढम चुनाव जीते और भजनलाल शर्मा से अच्छे रिश्ते के बूते उन्हें गृह विभाग भी मिल गया. राज्य मंत्री बेढम सरकार में कैबिनेट से कम का दर्जा नहीं रखते हैं. ऐसे में विजय बैंसला को सरकार अहमियत नहीं दे रही है. जाहिर तौर पर बैंसला अपनी ताकत समाज के मंच पर दिखाना चाहते हैं. इसलिए तो जब बेढम बातचीत का प्रस्ताव भी ला रहे हैं तो बैंसला अपना रूख मजबूती और आक्रामकता के साथ रख रहे हैं.
बैंसला के लिए शक्ति प्रदर्शन, बेढम सरकार के ‘शांतिदूत’
अब यह आंदोलन सिर्फ आरक्षण की मांग नहीं, बल्कि बेढम और बैंसला के बीच सत्ता और प्रभाव की लड़ाई भी बन गया है. बेढम, जो बीजेपी के मंत्री हैं, जाहिर तौर पर चाहते हैं कि समाज उनके साथ रहे. जब बीजेपी के भीतर खुद को गुर्जर की आवाज साबित करना है तो बेढम पर भी दारोमदार है कि वह इस महापंचायत को आंदोलन में तब्दील होने से पहले रोके. विजय बैंसला अपनी पिता की विरासत को मजबूत करने और बीजेपी के भीतर अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं. चंद घंटो के बाद यह तस्वीर और साफ हो जाएगी. क्योंकि अगर सरकार मसौदा लेकर नहीं आई तो गुर्जरों ने उग्र आंदोलन के संकेत भी दे दिए हैं. खास बात यह भी है कि विजय बैंसला ने साफ कह दिया है कि वो बंद कमरे में बात नहीं करेंगे.
शुरू से पूरी कहानी भी समझ लीजिए
गुर्जर आंदोलन की शुरुआत 2007 में हुई थी, जब किरोड़ी सिंह बैंसला ने गुर्जरों के लिए आरक्षण की मांग की. वो अपने लाल पगड़ी और सफेद धोती-कुर्ते के लिए मशहूर थे और “पटरीवाले बाबा” के नाम से जाने जाते थे. 2007 में हिंसक झड़पों में 27 लोगों की मौत हो गई थी और 2008 तक कुल 43 लोगों की जान गई. इसके बाद सरकार से बातचीत के बाद गुर्जर, गाड़िया लोहार, बंजारा, रेबारी और गडरिया समुदायों को विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) का दर्जा मिला, लेकिन ये संतोषजनक नहीं था. 2009 के चुनाव में वसुंधरा राजे की हार के पीछे भी वजह गुर्जर आंदोलन को ही बताया गया. लेकिन अशोक गहलोत के लिए भी गुर्जर
2019 में जब कांग्रेस राजस्थान में सत्ता में आई तो बैंसला ने फिर आंदोलन शुरू किया. दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग को जाम करके 5% आरक्षण की मांग की गई. इसके बाद सरकार ने विधानसभा में बिल पास कर इस समाज के लिए 5% आरक्षण दिया, जो शिक्षा और सरकारी नौकरियों में लागू हुआ. किरोड़ी सिंह बैंसला 2022 में गुजर गए, लेकिन उनकी विरासत को उनके बेटे विजय बैंसला ने संभाला. अब विजय बैंसला बीजेपी से जुड़े हैं और इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं.
-कुमार