सुप्रीम कोर्ट ने करीब 37 साल पुराने एक रेप मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। अदालत ने आरोपी की दोषसिद्धि तो बरकरार रखी, लेकिन यह माना कि अपराध के समय वह किशोर था, इसलिए उसे जेल के बजाय बाल सुधार गृह भेजे जाने का आदेश दिया।
यह मामला 1988 का है, जिसमें एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पाया कि वारदात के दिन 17 नवंबर 1988 को आरोपी की उम्र 16 साल, 2 महीने और 3 दिन थी। इसलिए, किशोर न्याय अधिनियम के तहत उसे जेल नहीं भेजा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि आरोपी द्वारा अपराध के समय किशोर होने की दलील देने पर अदालत ने अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को जांच का निर्देश दिया था। जांच में यह साबित हुआ कि आरोपी अपराध के दिन नाबालिग था।
किशोर न्याय अधिनियम लागू होगा
पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के पूर्व निर्णयों के अनुसार, नाबालिग होने की दलील किसी भी स्तर पर और कभी भी उठाई जा सकती है, भले ही मामला निपट चुका हो। इसके आधार पर किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधान दोषी पर लागू होंगे।
कोर्ट ने कहा, “इसलिए निचली अदालत और राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दी गई पांच साल की सजा को निरस्त किया जाता है, क्योंकि यह वैधानिक रूप से उचित नहीं ठहरती।” पीठ ने 2000 अधिनियम की धारा 15 और 16 के तहत आगे की कार्रवाई के लिए मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजते हुए आरोपी को 15 सितंबर को बोर्ड के समक्ष पेश होने का आदेश दिया।
पृष्ठभूमि
इससे पहले, राजस्थान हाईकोर्ट ने जुलाई 2024 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपी को 5 साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट में आरोपी के वकील ने यह तर्क दिया कि अपराध के समय उसकी उम्र 18 वर्ष से कम थी और अभियोजन पक्ष के मामले में कई विसंगतियाँ थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकारते हुए आरोपी को बाल न्याय प्रणाली के तहत राहत दी।