पटना: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव द्वारा चुनाव बहिष्कार के संकेत देने के बाद बिहार की राजनीति में घमासान मच गया है। एक ओर राजद और उसके सहयोगी दलों ने इस बयान का समर्थन किया है, वहीं जदयू और भाजपा नेताओं ने इसे लोकतंत्र विरोधी करार देते हुए कड़ी आलोचना की है।
जदयू-भाजपा ने किया कड़ा विरोध
बिहार सरकार में मंत्री जीवेश मिश्रा ने तेजस्वी के बयान को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा, “ऐसे बयान यह साबित करते हैं कि इन्हें भारत के संविधान से कोई सरोकार नहीं है। चुनाव का बहिष्कार लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला है।”
जदयू नेता खालिद अनवर ने भी तीखा प्रहार करते हुए कहा, “संविधान के तहत कोई भी संस्था सर्वोच्च नहीं है, लेकिन यह कहना कि गरीबों के नाम सूची से हटा दिए जाएंगे—ये आधारहीन आरोप हैं। पहले सूची तो आने दीजिए।”
मंत्री श्रवण कुमार ने तेजस्वी यादव के बयान को हताशा का प्रतीक बताया और कहा कि “ये बयान जनता को भ्रमित करने के लिए दिए जा रहे हैं।”
राजद और सहयोगियों ने दिया साथ
राजद विधायक वीरेंद्र सिंह ने तेजस्वी यादव के बयान का समर्थन करते हुए कहा, “अगर चुनाव आयोग का रवैया यही रहा, तो हम बहिष्कार जैसे कठोर कदम उठाने को मजबूर होंगे। हमें विश्वास है कि बिहार की जनता हमारे साथ खड़ी रहेगी।”
राजद विधायक ललित यादव ने मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार चुनाव आयोग के जरिए गरीबों का वोट काट रही है। यदि वोट काटे गए हैं, तो उन्हें जोड़ा जाए और जनता को पूरा समय दिया जाए।”
भाकपा माले नेता अजीत कुशवाहा ने भी समर्थन जताया और कहा, “जब हमारे वोटर का नाम ही लिस्ट से गायब हो जाएगा, तो चुनाव लड़ने का क्या औचित्य रह जाएगा?”
एआईएमआईएम नेता अख्तरुल इमाम ने भी इस मामले में तेजस्वी यादव के सुर में सुर मिलाते हुए कहा, “अगर मतदाता सूची से नाम काटे जाने की प्रक्रिया नहीं रुकी, तो बहिष्कार जैसे फैसले लेने पड़ सकते हैं।”
पृष्ठभूमि: मतदाता सूची पुनरीक्षण बना विवाद का केंद्र
पूरे विवाद की जड़ है मतदाता सूची का पुनरीक्षण, जिसे लेकर विपक्षी दलों का आरोप है कि इससे गरीब, अल्पसंख्यक और वंचित वर्गों के वोट सुनियोजित ढंग से काटे जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने हालांकि कहा है कि यह प्रक्रिया नियमित और पारदर्शी है, लेकिन विपक्ष इसे जनादेश की चोरी की साजिश बता रहा है।