राजस्थान के मरुस्थली शहर जोधपुर में, जहाँ इस समय स्वतंत्रता दिवस के राज्य स्तरीय समारोह की तैयारियों का शोर गूँज रहा है, वहीं मानजी का हत्था क्षेत्र में अचानक हुई फायरिंग ने इस गहमागहमी को दहशत में बदल दिया। कोचिंग सेंटर के बाहर चाय की प्याली थामे बैठी 21 वर्षीय रेणु विश्नोई—जो एसआई भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रही थी—पल भर में गोलीबारी का शिकार बन गई। गोली उसकी कोहनी को चीरती हुई भीतर जा फंसी, और उसकी चीख़ से आसपास का माहौल सन्नाटे में बदल गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, रेणु अपनी सहेली के साथ बैठी थी, और पास ही एक रिटायर्ड सैनिक भी चाय का स्वाद ले रहे थे। तभी अचानक गूंजा धमाका—किसी ने गोली चलाई, जिससे सैनिक की कार पर भी निशान पड़े। घायल रेणु को पहले सनसिटी अस्पताल और फिर एमडीएम अस्पताल ले जाया गया, जहाँ एक्सरे में सच सामने आया—यह कोई उछला हुआ पत्थर नहीं, बल्कि धातु की ठंडी सच्चाई थी: एक गोली।
लेकिन, यहाँ कहानी यथार्थ से ज़्यादा, पुलिसिया बयानबाज़ी के खेल में उलझती दिखी। शुरुआती जांच में पुलिस ने दावा किया कि यह चोट किसी गाड़ी के टायर से उछले पत्थर से हुई है। यह बयान, कांग्रेस नेताओं के मुताबिक, न केवल तथ्यों को तोड़-मरोड़ने की कोशिश है, बल्कि अपराधियों के मन से कानून का भय मिटाने वाली लापरवाही भी है।
जोधपुर शहर कांग्रेस के पदाधिकारियों ने इसे “कानून व्यवस्था की नाकामी” करार देते हुए मुख्यमंत्री से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका आरोप है कि पुलिस VIP इंतज़ामात में उलझी है, और अपराधी खुलेआम वारदातें अंजाम दे रहे हैं।
अब पुलिस NFSL टीम की मदद से सबूत जुटा रही है, और इलाके के CCTV फुटेज खंगाले जा रहे हैं। मगर, इतने भीड़भाड़ वाले इलाके में अंजाम दी गई यह घटना एक असहज सवाल छोड़ जाती है—
जब मुख्यमंत्री और आला अधिकारी शहर में मौजूद हों, तब भी अगर अपराधी यूँ बेखौफ़ गोली चला सकें, तो आम नागरिक की सुरक्षा की गारंटी आखिर कौन देगा
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