सांसद हनुमान बेनीवाल ने आवारा कुत्तों को शेल्टरों में डालने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि सरकार जब भी किसी बड़े संकट के सामने खड़ी होती है तो उसका सबसे आसान रास्ता यही होता है कि जिम्मेदारी से भागो और फैसला ऐसा दो जिससे शोर तो बहुत मचे लेकिन हल कुछ न निकले।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सहारा लेकर आवारा कुत्तों को शेल्टरों में डालने की बात करने वाली सरकार को ज़रा यह तो बताना चाहिए कि क्या हमारे देश में इतने शेल्टर मौजूद हैं? क्या इन शेल्टरों में इंसानों की तरह इन बेजुबानों के लिए खाना-पानी, दवाई और देखभाल की व्यवस्था होगी? या फिर यह सिर्फ़ एक दिखावे का कदम है जिससे सड़कों से नज़र हटाकर समस्या को दीवारों के पीछे बंद कर दिया जाए।
सरकार की यह नीति न तो मानवीय है और न ही व्यावहारिक। आज तक न नसबंदी का ठोस कार्यक्रम चला, न टीकाकरण की पूरी व्यवस्था बनी, न ही एंटी-रेबीज़ वैक्सीन अस्पतालों में समय पर मिलती है। जब बच्चे अस्पतालों में दवा के अभाव में तड़पते हैं और नागरिक रोज़ डर के साये में जीते हैं, तब सरकार अदालत के आदेश का हवाला देकर खुद की नाकामी छुपा रही है। यह मामला असल में सरकार की संवेदनहीनता और कर्तव्यहीनता को उजागर करता है।
ऊपर से विडंबना देखिए, यही सरकार हर मंच पर गाय माता–गाय माता का जाप करती है, खुद को गोभक्त बताती है लेकिन न गोशालाओं में गायों की हालत सुधरी, न सड़क पर बेसहारा घूम रही गायों को चारा-पानी और इलाज मिलता है। हजारों-लाखों गायें कूड़े के ढेर से पॉलिथीन खाकर दम तोड़ रही हैं और सरकार सिर्फ़ भाषणों में उनकी पूजा करती है।
जिस देश में गाय माता की देखभाल तक सरकार नहीं कर पा रही, वहां इतनी बड़ी तादाद में कुत्तों के लिए खाने, दवाई और शेल्टर की व्यवस्था करना क्या सिर्फ़ एक और ढकोसला नहीं है ? असलियत यही है कि सरकार न इंसानों की सुरक्षा की गारंटी दे पा रही है, न जानवरों की देखभाल कर पा रही है, और इस पूरे मामले ने उसकी दोहरी राजनीति और जिम्मेदारी से भागने की आदत को फिर उजागर कर दिया है।
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