राजस्थान के सिरोही में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के महासचिव मिलिंद परांडे का बयान केवल एक संगठनात्मक आग्रह भर नहीं था, बल्कि यह उस व्यापक बहस की ओर संकेत करता है जो आज भारतीय समाज के सामने खड़ी है। धर्मांतरण, नशाखोरी और मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण इन तीनों मुद्दों को परांडे ने एक ही धारा में रखकर देखा और चेतावनी दी कि यह सब मिलकर समाज की जड़ों को कमजोर कर रहे हैं।
सीमावर्ती जिलों में धर्मांतरण का सवाल
प्रेस कॉन्फ्रेंस में परांडे ने कहा कि राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में सुनियोजित ढंग से धर्मांतरण की गतिविधियाँ चल रही हैं। उनके अनुसार यह महज़ धार्मिक आस्था का मामला नहीं, बल्कि जनसंख्या के संतुलन को प्रभावित करने की एक रणनीति है। जब वे पूर्वोत्तर और सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध धार्मिक निर्माणों का उल्लेख करते हैं, तो यह केवल स्थानीय समस्या नहीं रह जाती, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा प्रश्न बन जाती है। यही कारण है कि उन्होंने धर्मांतरण निरोधक विधेयक लाने और कठोर प्रावधान करने की मांग रखी।
नशाखोरी : युवाओं की ऊर्जा पर संकट
परांडे का दूसरा बड़ा मुद्दा था युवाओं में बढ़ती नशाखोरी। उन्होंने इसे राष्ट्र की शक्ति पर हमला बताया। उनके अनुसार, युवा वर्ग जहाँ भविष्य की दिशा तय करता है, वहीं नशे की गिरफ्त में जाकर अपनी रचनात्मकता खो देता है। विहिप, बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी द्वारा प्रस्तावित नशा मुक्ति अभियान केवल स्वास्थ्य का विषय नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से भी एक अनिवार्य पहल के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मंदिरों पर नियंत्रण और सांस्कृतिक असंतोष
परांडे ने जिस तीखेपन से मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को अन्यायपूर्ण कहा, उसमें हिंदू समाज की गहरी नाराज़गी झलकती है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मस्जिदों और चर्चों पर कोई सरकारी दखल नहीं, तो केवल मंदिरों को क्यों नियंत्रण में रखा जाता है, श्रद्धालुओं की दान राशि का उपयोग यदि राजनीतिक या अन्य योजनाओं पर हो, तो यह आस्था के साथ छल है। विहिप का मंदिर मुक्ति आंदोलन इसी असंतोष को आवाज़ देने का प्रयास है।
एक व्यापक परिप्रेक्ष्य
धर्मांतरण, नशाखोरी और मंदिर नियंत्रण, ये तीनों मुद्दे सतही तौर पर अलग-अलग दिख सकते हैं, लेकिन परांडे का तर्क है कि इनका स्रोत एक ही है, वैश्विक और देशी शक्तियों द्वारा रचा गया षड्यंत्र, जिसका उद्देश्य भारत को उसकी सांस्कृतिक धुरी से काटना है। उनकी अपील थी कि समाज को सजग रहकर इन चुनौतियों का सामना करना होगा, वरना धीरे-धीरे यह समस्याएँ गहरी होती जाएँगी।
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Q. मिलिंद परांडे ने राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में धर्मांतरण की समस्या को किस रूप में देखा?
Ans. उन्होंने धर्मांतरण को केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि जनसंख्या संतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी रणनीति के रूप में देखा।
Q. परांडे ने युवाओं में नशाखोरी को किस दृष्टि से बड़ी चुनौती बताया?
Ans. उन्होंने नशाखोरी को राष्ट्र की शक्ति पर हमला बताया, क्योंकि इससे युवा अपनी रचनात्मकता खो देते हैं और भविष्य निर्माण की क्षमता कमजोर हो जाती है।
Q. मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को लेकर विहिप का क्या रुख है?
Ans. विहिप का मानना है कि केवल मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखना अन्यायपूर्ण है। श्रद्धालुओं की दान राशि का राजनीतिक या अन्य उपयोग आस्था के साथ छल है, इसलिए “मंदिर मुक्ति आंदोलन” चलाया जा रहा है।
Q. परांडे ने धर्मांतरण, नशाखोरी और मंदिर नियंत्रण को एक साथ क्यों जोड़ा?
Ans. उनका तर्क था कि इन सबका स्रोत एक