शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE एक्ट) के तहत प्रवेश के योग्य इन बच्चों का मामला कोर्ट में अटक गया है। निजी स्कूलों और शिक्षा विभाग के बीच की कानूनी लड़ाई में प्रक्रिया अधर में अटक गई है। मामला कोर्ट में लंबित है और अक्टूबर में इसकी अगली सुनवाई होगी। तब तक आधा सत्र भी निकल गया होगा, जिससे कि स्कूल में प्रवेश पाने की उम्मीद रखने वाले गरीब परिवार के बच्चों की स्कूल शिक्षा पर संकट गहरा गया है।
इस संकट के गहराने की एक वजह है और वो है RTE एक्ट के पैराग्राफ नंबर- 44 पर कानूनी पेंच। इस पैरा- 44 के मुताबिक, निजी स्कूलों में विद्यार्थियों के एडमिशन के लिए दो स्तरों पर नर्सरी/PP3+ (प्री-प्राइमरी एजुकेशन) और कक्षा-1 (प्राइमरी एजुकेशन) के स्तर पर पात्र मानी जाती है। इस बिंदु में दोनों ही लेवल को एजुकेशन का एंट्री प्वाइंट माना गया है यानी स्कूल चाहे तो नर्सरी या क्लास-1 पर एडमिशन दे सकता है। इन दोनों ही स्तर पर एडमिशन के बदले के निजी स्कूल सरकार से भुगतान की मांग कर रहे हैं। जबकि शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया है कि पहली कक्षा को ही एंट्री प्वाइंट माना जाएगा और उन्हीं कक्षाओं में गरीब बच्चों के लिए RTE का भुगतान स्कूल को होगा।
इस मामले में कोर्ट ने पैरा-44 पर स्टे लगाते हुए सुनवाई अक्टूबर तक टाल दी है। अब इसी स्टे की व्याख्या करते हुए निजी स्कूल का कहना है कि कोर्ट स्टे की स्थिति में एडमिशन नहीं होंगे। जबकि शिक्षा विभाग का कहना है कि एडमिशन की प्रक्रिया पर रोक नहीं है, बल्कि एंट्री प्वाइंट (नर्सरी हो या पहली कक्षा) के मामले में कोर्ट ने स्थगन आदेश दिया है।
ऑनलाइन लॉटरी के बाद एडमिशन लटके
2025-26 के लिए ऑनलाइन लॉटरी निकाली गई थी, जिसमें राज्य के 34,799 निजी विद्यालयों में तीन लाख से अधिक बच्चों का चयन किया गया। इनमें से करीब डेढ़ लाख छात्र-छात्राएं पहली कक्षा के लिए चयनित हुए। लेकिन पहली क्लास में प्रवेश देने को लेकर निजी स्कूलों और शिक्षा विभाग में ठन गई। अब इसका खामियाजा इस बार भी अभिभावकों और बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
मामला पिछले सत्र के दौरान शिक्षा विभाग की ओर से भुगतान नहीं किए जाने का है। निजी स्कूल प्रबंधनों का कहना है कि आरटीई के अंतर्गत प्री प्राइमरी कक्षाओं में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों के पुनर्भरण का भुगतान सरकार ने नहीं किया, पहले वह भुगतान करे। दरअसल, लॉटरी पहली और नर्सरी क्लास के लिए निकाली जाती है। शिक्षा विभाग का कहना है कि भुगतान सिर्फ पहली क्लास का किया जाएगा।
वहीं, निजी स्कूलों का कहना है कि उनकी एंट्री लेवल क्लास ‘नर्सरी’ है, इसलिए वे नर्सरी में ही आरटीई के तहत प्रवेश दे रहे हैं। निजी स्कूलों के इस तर्क पर शिक्षा विभाग का कहना है कि कोर्ट के आदेश का गलत अर्थ निकाला गया है और पहली कक्षा में आरटीई प्रवेश बाधित नहीं किया जा सकता।
हर बार एडमिशन में होती है देरी, स्थाई समाधान क्यों नहीं?
ये पहली बार नहीं है, जब RTE का मामला पेचीदगियों का सामना कर रहा है। साल दर साल इस तरह की दिक्कतें सामने आती रहती हैं। हर साल निजी स्कूल शिक्षा विभाग पर भुगतान नहीं होने का आरोप लगाते हैं और फिर प्रवेश प्रक्रिया बाधित भी होती है। सरकार की ओर से इन 3 लाख बच्चों को निशुल्क पढ़ाए जाने का निर्देश निजी स्कूलों को दिया गया है, बावजूद इसके कोई स्थाई समाधान नहीं हो रहा और RTE जैसी योजनाओं पर ग्रहण लग जाता है।
क्या है इसका समाधान?
राजस्थान के 30 हजार से ज्यादा निजी स्कूलों को भुगतान करने की व्यवस्था के बजाय क्या सरकार ऐसा नहीं कर सकती कि सीधे बच्चों के खाते में राशि ट्रांसफर की जाए? RTE की लॉटरी, फिर बच्चों को प्रवेश और सत्र खत्म होने के बाद शिक्षा विभाग का भुगतान, यह एक लंबी प्रक्रिया है। ऐसे में राजस्थान में बच्चों के खाते में राशि हस्तांतरित कर इस प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है। ताकि सत्र में देरी भी ना हो और बच्चों को प्रवेश भी समय पर मिले। सीधे बच्चे परिजन के साथ स्कूल जाएंगे और प्रवेश प्रकिया पूरी करेंगे। यह ठीक वैसे ही होगा, जैसे आम बच्चों के लिए उनके परिजन भुगतान करते।