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Friday, July 4, 2025

नगालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कृषि उपज बढ़ाने के लिए डंक रहित मधुमक्खी प्रजाति की पहचान की

Newsनगालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कृषि उपज बढ़ाने के लिए डंक रहित मधुमक्खी प्रजाति की पहचान की

नयी दिल्ली, 26 मई (भाषा) नगालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने डंक रहित मधुमक्खी की प्रजातियों की पहचान की है, जिनका उपयोग परागण (पॉलिनेशन) के माध्यम से कृषि उपज की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। यह जानकारी अधिकारियों से मिली।

पहचान की गई डंक रहित मधुमक्खी प्रजातियां टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस स्मिथ और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा कॉकरेल हैं।

यह अनुसंधान ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्म साइंसेज’ सहित कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है।

नगालैंड विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संकाय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक एवं प्रधान अन्वेषक (एआईसीआरपी मधुमक्खी एवं परागणकर्ता) अविनाश चौहान के अनुसार, ‘‘डंक रहित मधुमक्खियों का उपयोग डंक मारे जाने के भय के बिना परागण के लिए किया जा सकता है। वे अपने लोकप्रिय औषधीय शहद और परागण क्षमता के लिए जानी जाती हैं। इन प्रयोगों से अच्छी फसल उत्पादन के अलावा मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित शहद से अतिरिक्त आय भी हुई।’’

चौहान ने कहा, ‘‘हमारी टीम ने पाया कि इन मधुमक्खियों द्वारा परागण किए जाने पर मिर्च की फसल की पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि होती है। मिर्च में परागण की कमी को पूरा करने के लिए डंक रहित मधुमक्खियों और ए डोर्सटा, ए फ्लोरिया जैसी मधुमक्खी प्रजातियों और अन्य जंगली मधुमक्खियों जैसे हैलिकटिड मधुमक्खियों, सिरफिड मधुमक्खियों और एमेजिएला मधुमक्खियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले सात से दस वर्षों के अनुसंधान परिणामों ने विभिन्न हितधारकों को शहद में अशुद्धियों के मिश्रण के डर के बिना गुणवत्ता वाले शहद उत्पादन के लिए डंक रहित मधुमक्खियों को पालने और मधुमक्खियों की हानि को कम करने के कई अवसर प्रदान किए, जिससे यह पेशा अधिक लाभदायक हुआ।’

डंक रहित मधुमक्खियां की जानकारी पूर्वोत्तर भारत, पूर्वी भारत और दक्षिणी भारतीय राज्यों से मिली है। साथ ही हाल ही में उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारतीय राज्य भी इसमें जुड़ गए हैं। उत्तर पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में डंक रहित मधुमक्खियों का पालन अब भी शुरुआती अवस्था में है, लेकिन डंक रहित मधुमक्खियों का पालन पारंपरिक तरीके से घरेलू मधुमक्खी पालन केंद्रों में किया जाता है।

भाषा अमित माधव

माधव

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