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Sunday, July 6, 2025

कभी नहीं सोचा कि मैं नहीं लिखूंगी, यह मेरे लिये सांस लेने जैसा है : लेखिका बानू मुश्ताक

Newsकभी नहीं सोचा कि मैं नहीं लिखूंगी, यह मेरे लिये सांस लेने जैसा है : लेखिका बानू मुश्ताक

नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) भारत में महिलाओं के रोजमर्रा के जीवन का वृत्तांत लिखने में तीन दशक से अधिक समय बिताने वाली अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक का कहना है कि वह लेखन के बिना नहीं रह सकतीं, क्योंकि यह उनके लिए सांस लेने जैसा है।

लेखिका बानू मुश्ताक के कन्नड़ लघु कथा संग्रह ‘हृदय दीप’ के अनूदित संस्करण ‘हार्ट लैंप’ को 21 मई को लंदन में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसका अनुवाद दीपा भास्ती ने किया है।

मंगलवार को भारत लौटीं लेखिका ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में एक वकील, महिला अधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक के रूप में अपने करियर पर प्रकाश डाला।

मुश्ताक ने कहा, ‘‘मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी। मुझे लिखना था और मुझे कड़ी मेहनत करनी थी, मैंने वो सब किया है। इसमें बहुत सी चुनौतियां हैं। लिखना इतना आसान नहीं है, इसमें बहुत सी कठिनाइयां और चुनौतियां हैं, मुझे उनका भी सामना करना पड़ा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नहीं लिखूंगी। हर दिन मैं सोचती हूं कि मुझे लिखना है। मैं लिखे बिना नहीं रह सकती, लिखना मेरे लिए सांस लेने जैसा है, इसलिए मुझे लिखना है।’’

मुश्ताक की 12 कहानियों का यह संग्रह दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदाय में हर दिन संघर्ष करतीं महिलाओं के लचीले रुख, प्रतिरोध और उनकी हाजिरजवाबी का वर्णन करता है, जिसे मौखिक कहानी कहने की समृद्ध परंपरा के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया है।

छह अंतरराष्ट्रीय कथा संग्रह में से चयनित मुश्ताक की कृति ने परिवार और सामुदायिक तनावों को चित्रित करने की उनकी ‘‘मजाकिया, बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल, मार्मिक और कटु’’ शैली के लिए निर्णायकों को आकर्षित किया।

मुश्ताक ने अपनी जीत को ‘‘एक चमत्कारी बात’’ कहा। 77 वर्षीय मुश्ताक ने कहा, ‘‘जूरी के अध्यक्ष ने अपना भाषण दिया। मैं और मेरे बच्चे देख रहे थे कि वह क्या कहने जा रहे हैं, जब अंत में ‘हार्ट लैंप’ की घोषणा की गई, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं दो मिनट के लिए सुन्न हो गई। मैं समझ नहीं पाई कि मैं ये क्या सुन रही हूं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे बच्चे भी खुशी से उछल पड़े… मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इस प्रतियोगिता में भाग लूंगी और इस स्थान पर पहुंचूंगी। यह एक चमत्कारी पल है।’’

अपने लंबे करियर में, मुश्ताक ने 1990 से 2000 तक कन्नड़ अखबार ‘लंकेश पत्रिका’ के लिए एक संवाददाता के रूप में काम किया और वर्तमान में कर्नाटक के हासन की अदालत में वकील के रूप में काम करती हैं।

भाषा शफीक वैभव

वैभव

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