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Tuesday, August 26, 2025

उच्च न्यायालय का ‘जामिया उर्दू’ के डिग्री धारकों को नियुक्ति का अधिकार देने से इनकार

Newsउच्च न्यायालय का ‘जामिया उर्दू’ के डिग्री धारकों को नियुक्ति का अधिकार देने से इनकार

प्रयागराज, 27 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अलीगढ़ का अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान ‘जामिया उर्दू’ उचित कक्षाओं के बगैर डिग्रियां बांट रहा है और ऐसे डिग्री धारक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक (उर्दू भाषा) के पद पर नियुक्ति के लिए अपात्र हैं।

अजहर अली और अन्य की रिट याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा, “याचिकाकर्ता ने 1995 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसे 26 जुलाई, 1995 को प्रमाण पत्र जारी किया गया।”

उच्च न्यायालय ने कहा,“याचिकाकर्ता के मामले के मुताबिक, उसने ‘जामिया उर्दू’, अलीगढ़ में ‘आदिब-ए-कामिल’ की पढ़ाई करने के लिए जुलाई, 1995 में प्रवेश लिया और इसकी परीक्षा नवंबर, 1995 में यानी पांच महीने के भीतर हो गई और परिणाम जुलाई, 1996 में घोषित किया गया। रिकॉर्ड में दर्ज प्रमाण पत्र से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने फरवरी,1997 में ‘मुअल्लिम-ए-उर्दू’ परीक्षा उत्तीर्ण की।”

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि उन्होंने ‘जामिया उर्दू’ से ‘आदिब-ए-कामिल’ में डिग्रियां हासिल कीं और वे राज्य सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्ति पाने के पात्र थे। सभी याचिकाकर्ता उप्र अध्यापक पात्रता परीक्षा-2013 में शामिल हुए और परीक्षा उत्तीर्ण की।

इन याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनके नाम परीक्षा परिणामों के बाद तैयार मेधा सूची में थे जिसमें से कुछ लोगों को तैनाती दी गई, जबकि अन्य तैनाती की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

इस बीच, एक साल से कम अवधि में ‘आदिब-ए-कामिल’ परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले याचिकाकर्ताओं के संबंध में जब जांच कराई गई तब पाया गया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने उसी वर्ष डिग्रियां प्राप्त की जिस वर्ष उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा दी थी। परिणाम स्वरूप, पहले ही तैनाती पा चुके याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां रद्द की गईं।

इसके बाद इन याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का रुख किया और दलील दी कि ‘जामिया उर्दू’ एक मान्यता प्राप्त संस्थान है और जो कहा जाता है कि वहां कोई अध्यापक नहीं हैं और कक्षाएं नहीं होती हैं– वह निराधार है।

वहीं, सरकारी वकील ने दलील दी कि यह संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त नहीं है और ‘जामिया उर्दू’ ने नियमित कक्षाएं संचालित नहीं कीं, लेकिन डिग्रियां बांट दीं और इन याचिकाकर्ताओं ने धोखाधड़ी कर डिग्रियां हासिल कीं।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने दो परीक्षाएं- इंटरमीडिएट और ‘आदिब-ए-कामिल’ अल्पावधि में उत्तीर्ण की जो उचित नहीं है।

अदालत ने 17 मई को दिए अपने निर्णय में कहा कि ‘जामिया उर्दू’ अवैध रूप से डिग्रियां बांट रहा है, इसलिए याचिकाकर्ता सहायक अध्यापक (उर्दू) के पद के लिए अपात्र है।

भाषा राजेंद्र राजकुमार नोमान

नोमान

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