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Saturday, July 5, 2025

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की पीठ प्राथमिकी रद्द करने के अधिकार पर विचार करेगी

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प्रयागराज, 28 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार के लिए मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया है कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएनएस) की धारा 528 (पूर्व में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482) के तहत प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करके प्राथमिकी को रद्द किया जा सकता है।

इससे पूर्व, रामलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1989) के मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने व्यवस्था दी थी कि प्राथमिकी रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अर्जी पोषणीय (सुनवाई योग्य) नहीं होगी और उचित उपचार यह होगा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की जाए।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने सम्मानपूर्वक सात न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय से असहमति जताते हुए इस मामले को नौ न्यायाधीशों की पीठ के सुपुर्द कर दिया।

अदालत ने कहा कि हरियाणा सरकार बनाम भजनलाल (1990) और निहारिका इंफ्रा बनाम महाराष्ट्र सरकार (2021) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में सात न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय अप्रचलित हो गया है।

अदालत ने कहा, “यह अदालत सम्मानपूर्वक इस बात को स्वीकार करती है कि रामलाल यादव के मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय में स्थापित विधिक सिद्धांत, उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के चलते अब लागू नहीं होते।”

अदालत ने 27 मई को पारित 43 पेज के आदेश में कहा, “न्यायिक अनुशासन की भावना को देखते हुए यह अदालत इस मामले को नौ न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेजने की इच्छुक है।”

उच्च न्यायालय बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें चित्रकूट की निचली अदालत के आदेश के चुनौती दी गई है। इस आदेश में पुलिस को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। इन याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (उत्पीड़न), 323, 504, 506, 342 के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की भी मांग की है।

इस मामले में अपर शासकीय अधिवक्ता ने यह दलील देते हुए आपत्ति जताई कि रामलाल यादव के मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय को देखते हुए प्राथमिकी रद्द करने के लिए मौजूदा याचिका पोषणीय नहीं है क्योंकि इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती दी जा सकती है।

अदालत ने कहा कि भजनलाल के मामले में उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का दायरा बढ़ा दिया था, इसलिए अदालत ने इस मामले को नौ न्यायाधीशों की पीठ के सुपुर्द करना उचित समझा।

उच्चतम न्यायालय ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात सरकार (2025) के मामले में कहा था कि कोई ऐसा ठोस नियम नहीं है जो एक उच्च न्यायालय को बीएनएनएस की धारा 528 के तहत प्रदत्त अधिकार के तहत महज इसलिए प्राथमिकी रद्द करने से रोकता हो क्योंकि जांच प्रारंभिक चरण में है।

भाषा राजेंद्र नोमान

नोमान

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