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नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को कहा कि साहित्यिक परंपराओं की विविधता में भारतीयता की झलक महसूस की जाती है।
दो दिवसीय साहित्यिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 140 करोड़ देशवासियों के बड़े परिवार में कई भाषाएं, अनेक बोलियां और साहित्यिक परंपराओं की असीम विविधता है।
मुर्मू ने कहा, ‘‘लेकिन इस विविधता में भारतीयता की झलक महसूस की जाती है। भारतीयता की यह भावना हमारे देश के सामूहिक अवचेतन में भी गहराई से समाई हुई है। मैं देश की सभी भाषाओं और बोलियों को अपनी भाषा और बोली मानती हूं।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि वह देश की सभी भाषाओं और बोलियों को अपनी भाषा और बोली तथा सभी भाषाओं के साहित्य को अपना मानती हैं।
मुर्मू यहां राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित सम्मेलन ‘कितना बदल चुका है साहित्य?’ का उद्घाटन करने के बाद बोल रही थीं।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में साहित्य और साहित्यकारों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता की भावना रही है। उन्होंने कहा, ‘‘समय के साथ साहित्य के प्रति विशेष सम्मान की यह भावना और भी गहरी होती गई है।’’
उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहा कि बदलते संदर्भों के बीच स्थायी मानवीय मूल्यों की स्थापना ही कालजयी साहित्य की पहचान है।
मुर्मू ने कहा, ‘‘जैसे-जैसे समाज और सामाजिक संस्थाएं बदली हैं, चुनौतियां और प्राथमिकताएं बदली हैं, साहित्य में भी बदलाव देखने को मिले हैं। लेकिन साहित्य में कुछ ऐसा है जो सदियों बाद भी प्रासंगिक बना हुआ है। स्नेह और करुणा के साहित्यिक संदर्भ बदलते रहते हैं लेकिन उनकी भावनात्मक पृष्ठभूमि नहीं बदलती। साहित्य से प्रेरणा लेकर मनुष्य सपने देखता है और उन्हें साकार करता है।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि आज का साहित्य उपदेशात्मक नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘‘आज का साहित्य उपदेशात्मक नहीं हो सकता। आज का साहित्य नैतिकता की किताब नहीं हो सकता। आज का लेखक एक सहयात्री की तरह चलता है, देखता है और दिखाता है; अनुभव करता है और दूसरों को अनुभव कराता है।’’
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सम्मेलन में शुक्रवार को ‘भारत का नारीवादी साहित्य: नयी राहें’, ‘साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य’, तथा ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय साहित्य की नयी दिशाएं’ जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
सम्मेलन का समापन देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती की गाथा के साथ होगा।
भाषा आशीष पवनेश
पवनेश