प्रयागराज, 30 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में चिकित्सा सुविधाओं को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को कहा कि भले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राजधानी लखनऊ में चिकित्सा सुविधाएं विकसित की हैं, लेकिन अन्य शहरों में रह रहे लोगों को चिकित्सीय सहायता से वंचित किया जा रहा है।
अदालत ने कहा, “ऐसा लगता है कि प्रदेश सरकार का पूरा ध्यान राज्य की राजधानी में चिकित्सा सुविधाएं विकसित करने पर है और अन्य शहरों के लोगों को इलाज के लिए या तो लखनऊ जाना पड़ता है या फिर दिल्ली। करदाताओं का पैसा पूरे प्रदेश में समान रूप से खर्च किया जाना चाहिए ना कि किसी खास शहर को चिकित्सा केंद्र के तौर पर विकसित करना चाहिए।”
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सरकार को प्रदेश में “खराब होती चिकित्सा सुविधाओं” को लेकर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
चूंकि प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य) अदालत में मौजूद नहीं थे, इसलिए अदालत ने उन्हें अगली तिथि एक जुलाई, 2025 को पेश होने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने उन्हें प्रदेश में 42 मेडिकल कालेजों और इससे जुड़े अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से भी अदालत को अवगत कराने को कहा।
अदालत ने प्रमुख सचिव को अगली तिथि तक सभी मेडिकल कालेजों का दौरा करने का भी निर्देश दिया ताकि इन मेडिकल कालेजों से संबद्ध अस्पतालों की जरूरतों की सटीक जानकारी हासिल हो सके।
अदालत ने प्रयागराज के जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त और नगर निगम के नगर आयुक्त, एसआरएन अस्पताल के प्रभारी अधीक्षक, उप प्रभारी अधीक्षक, मुख्य चिकित्सा अधिकारी को अगली तिथि पर अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
इसके अलावा, अदालत ने प्रमुख सचिव को एक हलफनामा दाखिल कर संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), किंग जार्ज मेडिकल कालेज और राम मनोहर लोहिया चिकित्सा विज्ञान संस्थान सहित सभी मेडिकल कालेजों को बजटीय आबंटन का खुलासा करने का भी निर्देश दिया।
भाषा राजेंद्र जोहेब
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