नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने मीठी चीजों के सेवन को सीमित करने के महत्व को रेखांकित करने के लिए स्कूलों को ‘शुगर बोर्ड’ स्थापित करने का निर्देश दिया है, जिसके बाद विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से छात्र और अभिभावक दोनों मीठे के सेवन के बारे में सोच-समझकर निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
इस पहल का लक्ष्य एक बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता यानी बचपन में मोटापा, टाइप-2 मधुमेह और मेटाबॉलिज्म संबंधी विकारों में वृद्धि को रोकना है।
इस कदम के तहत पूरे भारत के स्कूलों को अपने परिसरों में शुगर जागरूकता बोर्ड प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है ताकि छात्रों और अभिभावकों दोनों को अपने दैनिक आहार में ‘छिपी हुई’ शुगर को पहचानने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इस कदम ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों, शिक्षकों और पोषण विशेषज्ञों के बीच उत्साह जगाया है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-दिल्ली में एंडोक्राइनोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. आर गोस्वामी ने इस कदम को एक अच्छी पहल बताया।
उन्होंने कहा, “कार्बोहाइड्रेट, विशेष रूप से कोल्ड ड्रिंक और मैदा युक्त खाद्य पदार्थ प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की तुलना में ऊर्जा और कैलोरी के अपेक्षाकृत सस्ते स्रोत हैं।”
गोस्वामी ने कहा, “इस प्रकार, समान धनराशि खर्च करने पर प्रोटीन युक्त भोजन की तुलना में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन अधिक मात्रा में मिलता है।”
मैक्स हेल्थकेयर, दिल्ली में ‘डायटेटिक्स’ की क्षेत्रीय प्रमुख डॉ. रितिका समद्दर ने कहा, “सीबीएसई द्वारा शुगर बोर्ड स्थापित करना और छात्रों को मीठी चीजों के सेवन और इसके छिपे स्रोतों के बारे में सूचित विकल्पों के बारे में शिक्षित करना एक शानदार पहल है।”
उन्होंने कहा, “अत्यधिक चीनी और मीठे पेय पदार्थों का सेवन ठीक नहीं है। बच्चों में, यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। अधिक सेवन से मोटापा, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, दांतों में सड़न जैसे प्रभाव हो सकते हैं।”
भाषा जोहेब दिलीप
दिलीप
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