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Sunday, July 6, 2025

करौली में महिलाओं के जल संरक्षण प्रयासों के बाद डकैतों ने हथियार डाल खेती शुरू की

Newsकरौली में महिलाओं के जल संरक्षण प्रयासों के बाद डकैतों ने हथियार डाल खेती शुरू की

(तस्वीरों के साथ)

(गौरव सैनी)

करौली (राजस्थान), 25 मई (भाषा) लगभग 15 वर्ष पहले तक, राजस्थान के करौली जिले में सम्पत्ति देवी और उनके जैसी अनेक महिलाओं को हमेशा यह डर सताता था कि उनके पति घर वापस लौटेंगे या नहीं।

जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में कमी के चलते बार-बार पड़ने वाले सूखे ने उनकी भूमि को बंजर बना दिया था। जल स्रोत सूख गए और इससे कृषि और पशुपालन प्रभावित हुआ, जो उनकी आजीविका का आधार थे।

आजीविका लगभग समाप्त होने और जीवनयापन का कोई दूसरा रास्ता न होने के कारण कई लोग डकैती करने के लिए मजबूर हो गए। पुलिस से बचने के लिए जान जोखिम में डालकर वे जंगलों में छिपकर रहने लगे।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करौली की औसत वार्षिक वर्षा 722.1 मिलीमीटर (1951-2000) से घटकर 563.94 मिमी (2001-2011) पर आ गई।

हालांकि, 2010 के दशक में कुछ उल्लेखनीय बदलाव हुआ। डर और निराशा से परेशान हो चुकी महिलाओं ने अपने जीवन में दोबारा परिवर्तन लाने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने पतियों को जंगल से बाहर आने और हथियार छोड़ने के लिए राजी किया।

साथ मिलकर उन्होंने पुराने, सूख चुके तालाबों को पुनर्जीवित करना तथा नए पोखरों का निर्माण करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अलवर स्थित ‘तरुण भारत संघ’ (टीबीएस) नामक गैर सरकारी संगठन की मदद ली, जो 1975 से जल संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है।

सम्पत्ति देवी के पति 58 वर्षीय जगदीश ने हथियार डालकर शांति का रास्ता चुना। जगदीश ने कहा, ‘‘मैं अब तक मर चुका होता। पत्नी ने मुझे वापस आकर फिर से खेती शुरू करने के लिए राजी किया।’’

वर्षों तक दूध बेचकर कमाई गई एक-एक पाई को जोड़कर उन्होंने 2015-16 में अपने गांव आलमपुर के पास एक पहाड़ी की तलहटी में पोखर बनाया।

जब बारिश हुई, तो पोखर भर गया और कई सालों में पहली बार उनके परिवार के पास इतना पानी था कि वे लंबे समय तक अपना गुजारा कर सकें।

पोखर के तटबंध पर बैठीं सम्पत्ति देवी कहती हैं, ‘‘अब हम सरसों, गेहूं, बाजरा और सब्जियां उगाते हैं।’’

वह इसे सिंघाड़े की खेती के लिए किराए पर भी देती हैं, जिससे उन्हें हर सीजन में करीब एक लाख रुपये की कमाई होती है।

पिछले कुछ सालों में आसपास के वनक्षेत्र में 16 ऐसे पोखर बनाए गए हैं, जिनसे डीजल पंप की सहायता से खेतों की सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जाता हैं।

इस कवायद के बाद करौली ने बदलाव देखा, जो कभी राजस्थान के सबसे ज्यादा डकैत वाले इलाकों में से एक था।

करौली के पुलिस अधीक्षक बृजेश ज्योति उपाध्याय कहते हैं, ‘‘पानी के साथ स्थिरता लौट रही है।’’

समुदाय के प्रयासों से जल संरक्षण के बाद भूजल में सुधार हुआ, जिससे खेती के नए अवसर पैदा हुए।

गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और राजस्थान के मूल निवासी सुमित डूकिया कहते हैं कि चंबल क्षेत्र का चट्टानी इलाका वर्षा जल के बहाव को तेज करता है, जिससे भूजल पुनर्भरण सीमित हो जाता है।

उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के इटावा में भी इसी तरह के परिवर्तन हुए हैं, जहां पूर्व डाकू खेती करने के लिए वापस लौट आए हैं।

करौली में संरक्षण की इस लहर ने शेरनी नदी को, जो कभी मौसमी नदी थी, बारहमासी नदी में बदल दिया है।

टीबीएस के रणवीर सिंह कहते हैं, ‘‘अब, गर्मी के चरम पर होने के समय भी नदी में पानी रहता है। भूजल स्तर सतह से पांच से दस फुट तक बढ़ गया है।’’

भाषा शफीक नरेश

नरेश

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