नयी दिल्ली, 12 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने आतंकवाद के वित्तपोषण के एक मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता शबीर अहमद शाह की जमानत अर्जी बृहस्पतिवार को खारिज कर दी और कहा कि शाह द्वारा इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियां चलाने तथा गवाहों को प्रभावित करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने कहा कि भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन यह सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता को कायम रखने अथवा किसी अपराध के लिए उकसाने जैसे कृत्य पर उचित प्रतिबंध भी लगाता है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के) अधिकार का दुरुपयोग उन रैलियों की आड़ में नहीं किया जा सकता है, जिनमें कोई व्यक्ति भड़काऊ भाषण देता है या राष्ट्रहित और राष्ट्रीय अखंडता की दृष्टि से हानिकारक एवं गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जनता को उकसाता है।’’
इसलिए, उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के सात जुलाई 2023 के उस आदेश के खिलाफ शाह की अपील खारिज कर दी, जिसमें उसे जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
शाह को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने चार जून, 2019 को गिरफ्तार किया था। उच्च न्यायालय ने आरोपों की गंभीर प्रकृति को देखते हुए शाह को ‘‘घर में नजरबंद’’ करने की वैकल्पिक अर्जी भी खारिज कर दी।
एनआईए ने 2017 में 12 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उन लोगों पर पथराव करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचने के लिए धन इकट्ठा करने की साजिश रचने का आरोप था।
शाह पर आरोप था कि उसने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी या आतंकवादी आंदोलन को बढ़ावा देने में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाई थी, जिसमें आम जनता को जम्मू-कश्मीर के अलगाव के समर्थन में नारे लगाने के लिए उकसाया, मारे गए आतंकवादियों या अलगाववादियों को ‘शहीद’ बताकर श्रद्धांजलि दी; हवाला लेनदेन के जरिये धन प्राप्त किया और एलओसी व्यापार के जरिये धन जुटाया, जिसका कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर में विध्वंसक और उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया गया।
उच्च न्यायालय ने पाया कि वह गैर-कानूनी संगठन जम्मू और कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी (जेकेडीपीएफ) का अध्यक्ष था।
पीठ ने शाह के खिलाफ लंबित 24 मामलों की विस्तृत जानकारी देने वाली तालिका की पड़ताल की, जिसमें इसी तरह के कई आपराधिक मामलों में उसकी संलिप्तता और जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश से संबंधित मामलों का संकेत दिया गया है।
अदालत ने कहा कि ये मामले उस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए की गई व्यापक तैयारियों और समन्वित कार्रवाई को दर्शाते हैं।
शाह की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए एनआईए के वकील ने कहा कि जांच एजेंसी ने शाह के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाए हैं और पाया है कि उसने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित गहरी साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
शाह के वकील ने दलील दी कि जिस समय उनके मुवक्किल पर विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था, उस समय शाह के संगठन को गैरकानूनी घोषित नहीं किया गया था और वह किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं थे।
हालांकि, अदालत को दलील में कोई दम नजर नहीं आया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल था, तो उसे केवल इसलिए वैध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जिस संगठन का वह नेतृत्व कर रहा था, उसे उस समय गैरकानूनी संगठन घोषित नहीं किया गया था।
पीठ ने कहा कि यद्यपि अभियोजन पक्ष द्वारा जिन वीडियो का सहारा लिया गया है, वे 25 वर्ष पुराने हैं, लेकिन शाह को उस समय किए गए कथित अपराधों से दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि ये वीडियो और कथित संबंधित कृत्य तभी प्रकाश में आए, जब वर्तमान मामले में जांच शुरू की गई।
पीठ ने कहा कि मामले में निचली अदालत ने आरोप तय किए थे और शाह की नियमित जमानत याचिका पर फैसला सुनाने के लिए, यह मानने का उचित आधार था कि शाह के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य प्रतीत होते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता जमानत हासिल करने के लिए खुद को आरोप मुक्त करने के लिए आवश्यक तथ्य उपलब्ध कराने के अपने कर्तव्य को पूरा कर पाने में सक्षम नहीं है।’’
निचली अदालत ने मार्च 2022 में अपीलकर्ता के खिलाफ कथित तौर पर व्यवधान पैदा करने और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचने के लिए धन जुटाने और इकट्ठा करने की साजिश रचने के आरोप तय किए थे।
उच्च न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि सह-आरोपी मोहम्मद यासीन मलिक को मामले में दोषी ठहराए जाने पर निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
भाषा सुरेश रंजन
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