(जस्टिन स्टेबिंग, एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी)
कैम्ब्रिज, 13 जून (द कन्वरसेशन) अपेंडिक्स कैंसर एक ऐसी स्थिति है, जो हाल तक इतनी दुर्लभ थी कि ज्यादातर लोग इसके बारे में नहीं सोचते थे। दशकों तक, यह ऐसी बीमारी थी जिसका डॉक्टरों को करियर में एक या दो बार ही सामना करना पड़ता था, और यह अक्सर वृद्धों को होती थी।
लेकिन अब एक आश्चर्यजनक और चिंताजनक प्रवृत्ति उभर रही है: अपेंडिक्स कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, और यह तेजी से 30, 40 साल और यहां तक कि कम उम्र के लोगों को प्रभावित कर रहा है। इस बदलाव ने कई विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है और वे इसका जवाब खोज रहे हैं।
अपेंडिक्स बड़ी आंत से जुड़ी एक छोटी, उंगली के आकार की थैली होती है। शरीर में इसके उद्देश्य पर अब भी बहस होती है, लेकिन यह अपेंडिसाइटिस यानी एक दर्दनाक सूजन का कारण बनने के लिए सबसे ज्यादा जानी जाती है।
‘एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि 1970 के दशक के बाद पैदा हुए लोगों में अपेंडिक्स कैंसर के मामलों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। वास्तव में, 1940 के दशक में पैदा हुए लोगों की तुलना में युवा पीढ़ी में इसके मामलों में तीन गुना या चार गुना तक वृद्धि हुई है।
कुल संख्या अब भी कम है क्योंकि अपेंडिक्स कैंसर हर साल प्रति दस लाख में से बहुत कम लोगों को होता है। लेकिन जितनी भी वृद्धि हो रही है, वह चौंकाने वाली है। इससे भी अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि अब लगभग तीन में से एक मामला 50 से कम उम्र के वयस्कों में होता है, जो अन्य प्रकार के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर की तुलना में बहुत अधिक अनुपात है।
इसका कारण कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता, लेकिन सबसे पहले आशंका है कि अपेंडिक्स कैंसर के बढ़ते मामलों का कारण एक पिछले कई दशकों में जीवनशैली और पर्यावरण में नाटकीय बदलाव है। 1970 के दशक से मोटापे की दर बढ़ी है, और अधिक वजन होना कई कैंसरों के लिए एक ज्ञात जोखिम कारक है, जिसमें पाचन तंत्र के कैंसर भी शामिल हैं।
इसके अलावा, आहार में अधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, शर्करा युक्त पेय और लाल या प्रसंस्कृत मांस की ओर झुकाव है, जिनमें से सभी को आंत के अन्य भागों में कैंसर के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है। शारीरिक गतिविधि में भी गिरावट आई है, और अधिक लोग डेस्क पर या स्क्रीन के सामने बैठकर लंबे समय तक समय बिताते हैं।
एक और अनुमान यह है कि हम नए पर्यावरणीय कारकों के संपर्क में आ रहे हैं जिनका सामना पिछली पीढ़ियों ने नहीं किया था। खाद्य उत्पादन का औद्योगिकीकरण, प्लास्टिक और रसायनों का व्यापक उपयोग, और पानी की गुणवत्ता में परिवर्तन सभी एक भूमिका निभा सकते हैं। हालाँकि, सबूत अब भी अपने शुरुआती चरण में हैं।
बीमारी का पता लगाना मुश्किल है। अपेंडिक्स कैंसर को विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण बनाने वाली बात यह है कि इसका पता लगाना कितना मुश्किल है। कोलन कैंसर को तो कभी-कभी स्क्रीनिंग कोलोनोस्कोपी के माध्यम से जल्दी पता लगाया जा सकता है, लेकिन इसके विपरीत अपेंडिक्स कैंसर का पता आसानी से नहीं चलता है।
अगर लक्षण दिखाई भी देते हैं, तो वह अस्पष्ट और आसानी से खारिज करने योग्य होते हैं। लोगों को हल्का पेट दर्द, सूजन या मल त्याग की आदतों में बदलाव का अनुभव हो सकता है, जो कई स्थितियों के लिए आम शिकायतें हैं। नतीजतन, अधिकांश मामलों का पता केवल संदिग्ध अपेंडिसाइटिस के लिए सर्जरी के बाद ही चलता है, जब अक्सर शुरुआती हस्तक्षेप के लिए बहुत देर हो चुकी होती है।
मामलों में वृद्धि के बावजूद, अपेंडिक्स कैंसर के लिए कोई नियमित स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं है। यह बीमारी व्यापक स्क्रीनिंग के लिहाज से बहुत दुर्लभ है, और मानक इमेजिंग या एंडोस्कोपी के माध्यम से अपेंडिक्स को देखना मुश्किल हो सकता है। इसका मतलब यह है कि मरीजों और डॉक्टरों दोनों को अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है।
(द कन्वरसेशन)
मनीषा अविनाश
अविनाश