मुंबई, 13 जून (भाषा) दो दशकों से अधिक समय से विमान के इंजन का शोर एअर इंडिया की दो केबिन अटेंडेंट के बीच एक अटूट दोस्ती की पृष्ठभूमि रहा है। इसकी एक किरदार श्रद्धा धवन हैं, जो बृहस्पतिवार को अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त विमान में सवार चालक दल की एक सदस्य थीं।
दोनों के बीच दोस्ती का अटूट बंधन आकाश में बना और अनगिनत ‘टेकऑफ’ और ‘लैंडिंग’ के जरिये दिनोंदिन मजबूत होता गया। वस्तुत: विमान के हर बार विमानतल पर उतरने के बाद और उड़ान भरने से पहले दोनों के बीच ‘फोनकॉल’ ने इस बंधन को और मजबूत बनाया, लेकिन बृहस्पतिवार को यह क्रम उस वक्त टूट गया, जब अहमदाबाद से श्रद्धा का विमान उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में सवार 242 लोगों में से 241 की मौत हो गई। इस घटना से श्रद्धा की यह दोस्त सदमे और दुःख में हैं।
श्रद्धा की करीबी दोस्त ने शुक्रवार को रुंधे गले से कहा, ‘‘जब से हम एअर इंडिया में शामिल हुए, तब से 21 साल तक हम हर ‘लैंडिंग’ और ‘टेकऑफ’ से पहले या बाद में एक-दूसरे को कॉल करना नहीं भूले।’’
उसकी दोस्त का नाम गुप्त रखा गया है।
दोस्त ने कहा, ‘‘जब श्रद्धा बृहस्पतिवार को अहमदाबाद से उड़ान भर रही थी, तो मैंने सोचा था कि लंदन में विमान के उतरने के बाद मैं उससे बात करूंगी, लेकिन अब वह कॉल कभी पूरी नहीं होगी।’’
विमान दुर्घटना की खबर ने उनकी दुनिया हिलाकर रख दी है।
उस लड़की ने कहा, ‘‘श्रद्धा के जाने से मेरी आत्मा का एक हिस्सा भी छिन गया है।’’ उनके शब्द दोनों के रिश्ते की गहराई का प्रमाण देते हैं।
श्रद्धा सहकर्मी से ज्यादा उनकी विश्वासपात्र थी, विमानन क्षेत्र की क्षणभंगुर दुनिया में उनका मजबूत सहारा।
उनकी दोस्ती महज़ अंतरराष्ट्रीय समय क्षेत्रों से जूझने और यात्रियों की सेवा करने तक सीमित नहीं थी , वह एक साझा भविष्य का सपना थी।
यादों के झरोखे से उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने बच्चों के व्यवस्थित हो जाने के बाद इस (विमानन की) दुनिया को अलविदा कहने की योजना बना रहे थे।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘हमने लंबी छुट्टियों पर जाने का फैसला किया था। आसमान को अपना जीवन समर्पित करने के बाद एक साथ (व्यावहारिक) दुनिया की खोज करने के वे सभी सपने… अब सिर्फ यादों में रह गये हैं।’’
इस हादसे की जांच जारी है और अनगिनत लोग अपने प्रियजनों के लिए शोक मना रहे हैं।
श्रद्धा की 15-वर्षीय बेटी से मिलने की योजना बना रही दोस्त ने कहा, ‘‘फ़ोन के दूसरी ओर पसरा सन्नाटा जीवन की क्षणभंगुरता की याद दिलाता है, और उन अपनों की अमिट छाप को भी, जो अब बस यादों में रह गए हैं।’’
भाषा सुरेश पवनेश
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