नयी दिल्ली, 14 जून (भाषा) कांग्रेस ने शनिवार को दावा किया गाजा में युद्धविराम की मांग वाले संयुक्त राष्ट्र के मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से भारत सरकार का दूरी बनाना ‘नैतिक रूप से कायरतापूर्ण कृत्य’ था और मोदी सरकार के शासनकाल में विदेश नीति चरमरा गई है।
मुख्य विपक्षी दल ने यह सवाल भी किया कि पिछले छह महीनों में ऐसा क्या बदलाव आया जिसके कारण भारत ने युद्धविराम का समर्थन करना बंद कर दिया और फ़लस्तीन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सैद्धांतिक रुख को भी छोड़ दिया?
संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा में ‘‘तत्काल, बिना शर्त और स्थायी’’ युद्धविराम की मांग वाले मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से भारत ने परहेज किया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्पेन द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस प्रस्ताव में तत्काल, बिना शर्त तथा स्थायी युद्धविराम और हमास एवं अन्य समूहों द्वारा बंधक बनाए गए सभी लोगों की तत्काल तथा बिना शर्त रिहाई की मांग की गई।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि हमारी विदेश नीति चरमरा गई है। शायद, प्रधानमंत्री मोदी को अब अपनी विदेश मंत्री की बार-बार की गई गलतियों पर फैसला लेना चाहिए और कुछ जवाबदेही तय करनी चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘गाजा में युद्धविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में 149 देशों ने मतदान किया। भारत उन 19 देशों में शामिल था जो अनुपस्थित रहे। इस कदम से हम वस्तुतः अलग-थलग पड़ गये हैं। ‘
उन्होंने कहा कि 8 अक्टूबर, 2023 को कांग्रेस ने इज़राइल के लोगों पर हमास द्वारा किए गए क्रूर हमलों की निंदा की थी।
खरगे का कहना है, ‘हमने लगातार उन अंधाधुंध कार्रवाइयों की निंदा की है जिनमें गाजा पट्टी की घेराबंदी और उसमें बमबारी शामिल है। 60,000 लोग मारे गए हैं तथा व्यापक और भयावह मानवीय संकट है।’
उन्होंने सवाल किया कि क्या पश्चिम एशिया में युद्धविराम, शांति और बातचीत की वकालत करने वाले भारत के लगातार रुख को छोड़ दिया गया है?
खरगे ने इस बात पर जोर दिया कि जब यह क्षेत्र भीषण हिंसा, मानवीय तबाही और बढ़ती अस्थिरता का सामना कर रहा हो तो भारत चुपचाप या निष्क्रिय होकर खड़ा नहीं रह सकता।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘यह शर्मनाक और निराशाजनक है कि हमारी सरकार ने गाजा में नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी और मानवीय दायित्वों को कायम रखने के लिए लाए गए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहने का फैसला किया है।’
उन्होंने कहा, ‘60,000 लोग, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, पहले ही मारे जा चुके हैं, एक पूरी आबादी को कैद किया जा रहा है और भूख से मौत के घाट उतार दिया जा रहा है। ऐसे में हम कोई रुख नहीं अपना रहा है।’
उनका कहना है, ‘यह हमारी उपनिवेशवाद-विरोधी विरासत के विपरीत कदम है। वास्तव में हम न केवल चुप खड़े हैं क्योंकि नेतन्याहू ने पूरे देश को नष्ट कर दिया है, बल्कि हम खुश भी हो रहे हैं क्योंकि उनकी सरकार ईरान पर हमला कर रही है और उसकी संप्रभुता का घोर उल्लंघन और सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पूर्ण उल्लंघन करते हुए उसके नेतृत्व की हत्या कर रही है। ‘
प्रियंका गांधी ने इस बात पर जोर दिया, ‘हम, एक राष्ट्र के रूप में, अपने संविधान के सिद्धांतों और हमारे स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को कैसे त्याग सकते हैं जिन्होंने शांति और मानवता पर आधारित अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र का मार्ग प्रशस्त किया?’
उन्होंने कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है।कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘सच्चा वैश्विक नेतृत्व न्याय की रक्षा करने के लिए साहस की मांग करता है, भारत ने अतीत में यह साहस दिखाया है।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘भारत हमेशा शांति, न्याय और मानवीय सम्मान के लिए खड़ा रहा है। लेकिन आज, भारत दक्षिण एशिया, ब्रिक्स और एससीओ में गाजा में युद्धविराम की मांग करने वाले प्रस्ताव से दूरी बनाने वाला एकमात्र देश है।’
उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत ने युद्ध के ख़िलाफ़, नरसंहार के ख़िलाफ़ और न्याय के लिए अपना सैद्धांतिक रुख से पीछे हट गया है?
वेणुगोपाल ने कहा कि विदेश मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि पिछले छह महीनों में ऐसा क्या बदलाव आया जिसके कारण भारत ने युद्धविराम का समर्थन करना बंद कर दिया?
उनका कहना है, ‘हम जानते हैं कि इस सरकार को नेहरू जी की विरासत का बहुत कम सम्मान है, लेकिन फ़लस्तीन पर वाजपेयी जी के सैद्धांतिक रुख को भी क्यों छोड़ दिया?’
कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेडा ने कहा कि भारत का 12 जून, 2025 को संयुक्त राष्ट्र में गाजा युद्धविराम पर मतदान से दूर रहना एक चौंका देने वाला एवं नैतिक रूप से कायरतापूर्ण कृत्य है जो भारत की उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के साथ शर्मनाक विश्वासघात है।
खेड़ा के अनुसार, एक भाजपा सांसद (निशिकांत दुबे) का हाल ही में फलस्तीन के समर्थन में भारत की भूमिका का महिमामंडन और इस मतदान से दूर रहना, पाखंड की पराकाष्ठा और सरकार की दोहरी विदेश नीति के रूप में उजागर करता है।
उन्होंने कहा, ‘एक ऐसी सरकार जो गाजा में बच्चों के जलाए जाने के बावजूद युद्धविराम के लिए वोट देने से डरती है, वह भारत या दुनिया को नैतिक दिशा और नेतृत्व देने के लायक नहीं है।’
उन्होंने दावा किया कि जब इजरायल पश्चिम एशिया को आग में झोंक रहा है, गाजा, वेस्ट बैंक, लेबनान, सीरिया, यमन और अब ईरान पर बमबारी कर रहा है, मोदी सरकार की मिलीभगत ने भारत की अंतरात्मा को छोड़ दिया है।
प्रस्ताव पर हुए मतदान में भारत समेत 19 देशों ने भाग नहीं लिया, जबकि 12 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया और पक्ष में 149 वोट पड़े।
‘नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को कायम रखना’ शीर्षक वाले प्रस्ताव पर मतदान की व्याख्या में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने कहा कि कि भारत गहराते मानवीय संकट से बहुत चिंतित है और नागरिकों की मौत की घटना की निंदा करता है।
हरीश ने कहा कि भारत पहले भी इजराइल-फलस्तीन मुद्दे पर प्रस्तावों से दूर रहा है।
भाषा हक माधव
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