वाशिंगटन, 14 जून (एपी) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लंबे समय से यह कोशिश करते रहे हैं कि वे सहयोगियों को डराकर उन्हें अपने अधीन कर सकते हैं, यह एक ऐसा दांव है, जो सोमवार को कनाडा में शुरू होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले तेजी से परखा जा रहा है।
ट्रंप ने कठोर शुल्क लगाने की धमकी दी है, इस विश्वास के साथ कि अन्य देश ‘‘झुक’’ जाएंगे। उन्होंने कनाडा और ग्रीनलैंड को अपने नियंत्रण में लेने का भी इरादा जाहिर किया है।
अमेरिका के राष्ट्रपति ने संकेत दिया है कि वह हमले के शिकार भागीदारों की रक्षा करने के नाटो के दायित्वों का सम्मान नहीं करेंगे। उन्होंने व्हाइट हाउस में हुई बैठकों के दौरान यूक्रेन और दक्षिण अफ्रीका के नेताओं को दबाव में लेने का भी प्रयास किया है।
हालांकि, कई विश्व नेताओं को ट्रंप से डरने की कम वजहें नजर आती हैं क्योंकि वे यह भी जानते हैं कि अगर ट्रंप ने अपनी धमकियों पर अमल किया तो इससे अमेरिका के लिए भी जोखिम हो सकता है। उनका मानना है कि ट्रंप अंततः पीछे हट जाएंगे क्योंकि उनकी कई योजनाएं अमेरिका को नुकसान पहुंचा सकती हैं या फिर उन्हें आसानी से ‘‘समझा-बुझाकर’’ सहयोग करने के लिए राजी किया जा सकता है।
यूरोपीय विदेश संबंध परिषद के अनुसंधान निदेशक जेरेमी शापिरो ने कहा, ‘‘कई नेता अभी भी ट्रंप से भयभीत लगते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वे भी उनके धमकाने के तरीके से निपटना सीख रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कनाडा, ईरान, चीन और यूरोपीय संघ जैसी विविधतापूर्ण जगहों पर, हम ये संकेत देख रहे हैं कि नेता अब यह समझ रहे हैं कि ट्रंप किसी भी ‘निष्पक्ष संघर्ष’ से डरते हैं। और इसलिए वे उनके खिलाफ खड़े होने के लिए तेजी से तैयार हो रहे हैं।’’
शापिरो द्वारा मई में किए गए विश्लेषण के अनुसार, ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के बाद से 22 मौकों पर सार्वजनिक रूप से सैन्य कार्रवाई की धमकी दी, जिनमें अमेरिका ने केवल दो बार बल का प्रयोग किया है।
जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले ही समूह के अन्य नेताओं की ओर से ट्रंप के खिलाफ प्रतिरोध के संकेत मिलने लगे हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोपीय एकजुटता दिखाने के लिए सप्ताहांत में ग्रीनलैंड का दौरा करने की योजना बनाई है। वहीं, कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा है कि ट्रंप के शुल्क के कारण अमेरिका और उसके उत्तरी पड़ोसी के बीच दशकों पुरानी साझेदारी में दरार आने के बाद अमेरिका अब दुनिया में ‘‘प्रमुख’’ ताकत नहीं रह गया है।
पिछले सप्ताह कार्नी ने कहा, ‘‘हम शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद के दशकों में अमेरिकियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे, क्योंकि अमेरिका ने विश्व मंच पर प्रमुख भूमिका निभाई थी, लेकिन आज वह प्रभुत्व अतीत की बात हो गई है।’’
ईरान पर इजराइल के हमले ने वैश्विक परिदृश्य में एक नया मोड़ ला दिया है, क्योंकि शिखर सम्मेलन के नेता विश्व की कुछ सबसे जटिल समस्याओं से निपटने के लिए एकत्र हो रहे हैं।
कनाडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह पहले ही तय हो चुका था कि जी7 पिछले शिखर सम्मेलनों की तरह संयुक्त विज्ञप्ति जारी नहीं करेगा, जो इस बात का संकेत है कि ट्रंप को अन्य विश्व नेताओं के साथ एक ही सहमति पर लाना कितना मुश्किल हो सकता है।
व्हाइट हाउस ने कहा है कि चर्चा किए जा रहे मुद्दों पर नेताओं के अलग-अलग बयान जारी किए जाएंगे।
पिछले महीने सिंगापुर में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मैक्रों ने फ्रांस को ‘‘अमेरिका का मित्र और सहयोगी’’ कहा था, लेकिन अन्य देशों पर ‘‘हावी’’ होने की ट्रंप की इच्छा पर भी सवाल उठाया था।
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने आयातित वस्तुओं पर उच्च शुल्क लगाने के ट्रंप के एजेंडे का विरोध किया, उनका तर्क था कि इससे आर्थिक विकास को नुकसान होगा।
जापानी नेता ने शिखर सम्मेलन से पहले ट्रंप को विशेष रूप से फोन करके इस बात की पुष्टि की कि वे शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत करने की योजना बना रहे हैं, जो कि शिखर सम्मेलन से कहीं अधिक जापान पर केंद्रित होगी।
एपी शफीक रंजन
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