पालघर, 14 जून (भाषा) महाराष्ट्र के पालघर जिले के मोखाडा में एक महिला ने एम्बुलेंस उपलब्ध न होने के कारण गर्भ में ही अपने बच्चे को खो दिया और उसकी नाजुक हालत के कारण उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकना पड़ा। महिला के परिजनों ने शनिवार को यह दावा किया।
महिला के पति ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने घटना के बारे में जवाबदेही तय करने की मांग की तो पुलिस ने उनकी पिटाई कर दी। हालांकि, अधिकारियों ने इन दावों का खंडन किया है।
जोगलवाड़ी गांव की रहने वाली अविता कवार को 10 जून को प्रसव पीड़ा शुरू हुई, लेकिन 108 नंबर पर कॉल करने के बावजूद उसे एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गयी। ग्यारह जून को भी यही हुआ और नतीजा वही रहा, जिसके बाद उन्हें निजी वाहन से खोडाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाया गया।
वहां के चिकित्सकों ने पहले तो इलाज का आश्वासन दिया, लेकिन तीन घंटे बाद उन्होंने कहा कि उसे मोखाडा ग्रामीण अस्पताल में ले जाया जाए क्योंकि उसकी हालत गंभीर थी। दो घंटे बाद जब आसे सब सेंटर से उसे लाने के लिए गाड़ी आई, तब तक गर्भ में ही भ्रूण की जान जा चुकी थी।
सूत्रों ने बताया कि अविता की हालत बिगड़ने के कारण उसे नासिक सिविल अस्पताल रेफर कर दिया गया, लेकिन कोई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके परिणामस्वरूप उसके पति सखाराम को मृत शिशु को एक थैले में रखकर अंतिम संस्कार के लिए बस से 80 किलोमीटर का सफर तय कर गांव वापस जाना पड़ा।
सखाराम ने आरोप लगाया, ‘‘जब मैंने खोडाला पीएचसी में उपचार में देरी के बारे में सवाल किया, तो पुलिस ने मुझ पर हमला किया।’’
हालांकि, पालघर के पुलिस अधीक्षक यतीश देशमुख द्वारा आदेशित जांच में दावा किया गया कि सखाराम नशे में था और उसके उग्र व्यवहार के कारण चिकित्सकों के अनुरोध पर पुलिस को उसे पीएचसी परिसर से बाहर निकालना पड़ा।
शनिवार को पुलिस की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि प्रत्यक्षदर्शियों ने पुष्टि की है कि सखाराम की पिटाई नहीं की गई थी।
खोडाला पीएचसी के चिकित्सा अधिकारी डॉ. अश्विनी मोरे ने पहली बार एम्बुलेंस उपलब्ध न होने और दूसरी बार देरी होने की पुष्टि की।
मोखाडा ग्रामीण अस्पताल के डॉ. भाऊसाहेब चत्तर ने कहा कि खोडाला में जांच के दौरान पाया गया कि भ्रूण की जान जा चुकी है, जबकि अविता को नासिक सिविल अस्पताल में आपातकालीन सर्जरी के बाद बचा लिया गया।
भाषा
सुभाष माधव
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