(राधा रमण मिश्रा)
नयी दिल्ली, 15 जून (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल के दौरान मजबूत आर्थिक वृद्धि, राजकोषीय स्थिति और महंगाई दर में नरमी के साथ भारत आज आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, लेकिन अच्छी नौकरी सृजित करने, विनिर्माण और अगली पीढ़ी के सुधारों को आगे बढाने के मोर्चे पर स्थिति अच्छी नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में 2014 में जब राष्ट्रीयज जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार सत्ता में आई थी, उस समय आर्थिक वृद्धि धीमी थी, महंगाई बढ़ी हुई थी, डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर अस्थिर थी और राजकोषीय तथा चालू खाते का घाटा ऊंचा बना हुआ था तथा फंसे कर्ज की समस्या थी।
सुब्बाराव ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘आज, 11 साल बाद, आर्थिक वृद्धि मजबूत है, मुद्रास्फीति नरम हुई है, रुपया स्थिर है, बाह्य क्षेत्र मजबूती दिखा रहा है, राजकोषीय स्थिति बेहतर है और फंसे कर्ज की समस्या समाप्त हो गयी है। हालांकि, शुल्क बाधाओं और बिगड़ते भू-राजनीतिक तनावों से कई वैश्विक बाधाएं और अनिश्चितताएं उत्पन्न हुई हैं, बावजूद इसके भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है जो महत्वपूर्ण है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 11 वर्षों में यह एक उल्लेखनीय बदलाव है, यह खुशी का कारण है, लेकिन जश्न मनाने का नहीं…। अन्य बातों के साथ हम रोजगार, विनिर्माण और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में विफल रहे हैं।’’
एक सवाल के जवाब में सुब्बाराव ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) बढ़ रही है, और हम आगे बढ़े हैं। आज हम चार ट्रिलियन (4,000 अरब डॉलर) की अर्थव्यवस्था हैं। जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी तब हम 11वें स्थान पर थे। आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हम इस साल चौथी सबसे बड़ी और 2027 में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जीडीपी सिर्फ एक पैमाना है। आप जानते हैं, हम एक बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, हमारी आबादी 1.4 अरब है। लेकिन सचाई है कि प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से, हम अब भी एक गरीब देश हैं, जो किसी देश की बेहतरी का एक मापदंड है। प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,800 डॉलर (2,878 डॉलर) है, हम इस मामले में 136वें (196 देशों में) स्थान पर हैं। हम ब्रिक्स में सबसे गरीब हैं। हम जी-20 में सबसे गरीब हैं। और हमारे पास दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक गरीब लोग हैं।’’
उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था का प्रमुख पैमाना आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति होती है। पिछले 11 साल में अगर मोदी सरकार के कार्यकाल में औसत वास्तविक वृद्धि दर (कोविड महामारी 2020-21 में आर्थिक वृद्धि में गिरावट के बावजूद) 6.2 प्रतिशत, जबकि मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत रही है। वहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 10 साल (2004-14) में वृद्धि दर औसतन 6.7 प्रतिशत (नई श्रृंखला के तहत) और मुद्रास्फीति लगभग 8.1 प्रतिशत थी।
रोजगार की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर वर्ष 2008 से 2013 तक आरबीआई के गवर्नर रहे सुब्बाराव ने कहा, ‘‘…पिछले 11 साल में रोजगार में कोई सुधार नहीं हुआ है। नौकरियां तो सृजित हो रही हैं, लेकिन वे असंगठित क्षेत्र में अनुत्पादक, कम उत्पादकता वाली, अंशकालिक नौकरियां हैं। संगठित क्षेत्र में पर्याप्त उत्पादक नौकरियां सृजित नहीं हो पा रही हैं, और यह मौजूदा सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है।’’
एक सवाल के जवाब में सुब्बाराव ने कहा, ‘‘ हमें नौकरियां सृजित करने के लिए विनिर्माण पर ध्यान देना होगा। विशेष रूप से लघु और मझोले उद्योगों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, वह रोजगार गहन क्षेत्र हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में स्थिति पिछले 11 साल में खास सुधरी नहीं है।’’
आंकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र का जीडीपी में योगदान स्थिर बना हुआ है। 2014 में विनिर्माण क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 16.7 प्रतिशत था जो वर्तमान में करीब 17 प्रतिशत है।
अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के बारे में पूछे जाने पर, सुब्बाराव ने कहा, ‘‘ मोदी सरकार के बारे में एक और निराशाजनक बात यह है कि ऐसा जान पड़ता है, वे सुधारों से पीछे हट गए हैं। भूमि सुधार, श्रम सुधार, कराधान सुधार, विदेशी निवेश में सुधार, गवर्नेंस में सुधार, ये सभी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन इस पर अब कोई बात नहीं हो रही।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने जो कृषि कानून लागू किये, वह उनसे पीछे हट गई। और वे शायद ही कभी किसी अन्य सुधार के बारे में बात करते हैं। एक बात मैं कहना चाहता हूं कि, आप जानते हैं, 1991 में हमने जो पहली पीढ़ी के सुधार किए थे, उन्हें केंद्र सरकार राज्यों से परामर्श किए बिना खुद ही लागू कर सकती थी। क्योंकि वे सभी केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में थे। चाहे औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था को खत्म करना हो, आयात क्षेत्र को खोलना हो, वित्तीय क्षेत्र को खोलना हो, वित्तीय क्षेत्र का विस्तार करना हो, ये सभी केंद्र सरकार राज्यों से परामर्श किए बिना कर सकती थी क्योंकि ये सभी केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं।’’
सुब्बाराव ने कहा, ‘‘लेकिन दूसरी पीढ़ी के सुधार के बारे में हम बात नहीं कर रहे हैं। आप जानते हैं, भूमि, श्रम, कराधान क्षेत्र में सुधार के लिए, राज्य सरकारों की सहमति और सहयोग की आवश्यकता होती है। और दुर्भाग्य से, केंद्र सरकार इस मामले में राज्यों से सहयोग लेने को लेकर पहल करती नहीं दिखती है।’’
उल्लेखनीय है कि सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामले को सुलझाने के लिए कदम उठाये थे लेकिन विरोध प्रदर्शन के कारण उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कृषि कानून में संशोधन को भी विरोध प्रदर्शन के कारण वापस ले लिया गया। श्रम सुधार के मामले में सरकार ने चार संहिता बनाई हैं, लेकिन केंद्र का कहना है कि कुछ राज्यों का इस मामले में सकारात्मक रुख नहीं है और इस कारण इसे अबतक अधिसूचित नहीं किया गया है।
भाषा रमण अजय
अजय