नयी दिल्ली, 15 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय द्वारा लगभग पांच महीने पहले मंजूरी दिए जाने के बावजूद विभिन्न उच्च न्यायालय लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। केंद्र सरकार के पास उपलब्ध विवरण से यह जानकारी मिली है।
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से वाकिफ लोगों के मुताबिक, अभी तक किसी भी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने तदर्थ न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश नहीं की है।
देश में 25 उच्च न्यायालय हैं, लेकिन 11 जून तक किसी भी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है।
उच्चतम न्यायालय ने 18 लाख से ज्यादा आपराधिक मामलों के लंबित रहने को देखते हुए 30 जनवरी को उच्च न्यायालयों को तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की इजाजत दे दी थी, बशर्ते इनकी संख्या अदालत के लिए स्वीकृत कुल न्यायाधीशों के पदों के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हो।
संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए उच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने की इजाजत देता है।
तय प्रक्रिया के मुताबिक, संबंधित उच्च न्यायालय का कॉलेजियम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें कानून मंत्रालय के न्याय विभाग को भेजता है।
इसके बाद न्याय विभाग उम्मीदवारों की जानकारी और विवरण जोड़ता है और फिर उन्हें उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम को भेजता है।
इसके बाद उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम अंतिम फैसला लेता है और सरकार को चयनित व्यक्तियों को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है। राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की ‘नियुक्ति के वारंट’ पर हस्ताक्षर करते हैं।
अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। लेकिन अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी।
अधिकारियों ने पहले बताया था कि एक मामले को छोड़कर, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का कोई उदाहरण नहीं है।
उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति पर 20 अप्रैल, 2021 को दिए गए फैसले में शीर्ष अदालत ने कुछ शर्तें लगाई थीं।
हालांकि, बाद में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई (वर्तमान प्रधान न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की उच्चतम न्यायालय की विशेष पीठ ने कुछ शर्तों में ढील दी और कुछ को स्थगित रखा।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे द्वारा लिखे गए फैसले में लंबित मामलों को निपटाने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दो से तीन साल की अवधि के लिए तदर्थ न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।
एक शर्त में कहा गया था कि यदि उच्च न्यायालय अपने स्वीकृत पदों के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है, तो तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा सकती, जबकि दूसरी शर्त में कहा गया था कि तदर्थ न्यायाधीश मामलों से निपटने के लिए अलग-अलग पीठों में बैठ सकते हैं।
पीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक उच्च न्यायालय को दो से पांच तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए और यह संख्या कुल स्वीकृत पदों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
भाषा संतोष दिलीप
दिलीप