नयी दिल्ली, 15 जून (भाषा) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 2018 से 2024 तक एकत्र किए गए पर्यावरण मुआवजे का केवल 0.2 प्रतिशत ही पर्यावरण की सुरक्षा पर खर्च किया। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर एक आवेदन में यह जानकारी सामने आई है।
सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा दायर आरटीआई से सामने आया कि सीपीसीबी ने इस अवधि के दौरान पर्यावरण मुआवजे (ईसी) के तहत जुर्माने और दंड के रूप में 45.81 करोड़ रुपये एकत्र किए लेकिन केवल नौ लाख रुपये खर्च किए, जो कुल राशि के पचासवें हिस्सा से भी कम है।
सीपीसीबी के पास केवल 2024-25 में नौ लाख रुपये के इस्तेमाल का रिकॉर्ड है। सीपीसीबी को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा एकत्र किए गए पर्यावरण मुआवजे का 25 प्रतिशत प्राप्त होता है और विभिन्न मामलों में प्रदूषण करने वालों पर सीधे जुर्माना लगाता है।
सीपीसीबी को मिलने वाली जुर्माना रााशि का उपयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है, जिसमें प्रयोगशालाओं के लिए संसाधन जुटाना, नेटवर्क की निगरानी करना, अनुपालन अध्ययन, क्षमता निर्माण और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा नियुक्त समितियों द्वारा किए जाने वाले खर्च शामिल हैं।
हालांकि, इस राशि का एक बड़ा हिस्सा खर्च नहीं किया गया है। आंकड़ों से यह भी पता चला कि सीपीसीबी ने इस अवधि के दौरान पर्यावरण संरक्षण शुल्क (ईपीसी) के तहत एकत्र किए गए 427.37 करोड़ रुपये में से केवल 130.9 करोड़ रुपये खर्च किए, जो लगभग 30 प्रतिशत है।
ये निधि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए है।
उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार, दिल्ली और एनसीआर में पंजीकृत 2,000 सीसी व उससे अधिक इंजन क्षमता वाले डीजल वाहनों की एक्स-शोरूम कीमत के एक प्रतिशत की दर से ईपीसी एकत्र किया जाता है।
इस निधि का उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर और पंजाब के कुछ हिस्सों में वायु गुणवत्ता सुधार प्रयासों (अनुसंधान एवं विकास), वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण, स्वास्थ्य प्रभाव अध्ययन और प्रदूषण शमन परियोजनाओं में मदद करना है।
आंकड़ों से पता चला कि लगातार कम खर्च की प्रवृत्ति बनी हुई है।
सीपीसीबी ने 2016-17 में 29.28 करोड़ रुपये एकत्र किए लेकिन केवल एक लाख रुपये खर्च किए।
वहीं 2023-24 में 65.28 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, जबकि खर्च केवल 22.38 करोड़ रुपये रहा।
सीपीसीबी ने 2024-25 में 74.39 करोड़ रुपये एकत्र किए जबकि खर्च केवल 31.98 करोड़ रुपये किए।
भाषा जितेंद्र प्रशांत
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