लंदन, 16 जून (भाषा) इंग्लैंड के महान तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन ने अपने 21 साल के करियर के दौरान भारतीय दिग्गजों सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली के खिलाफ अपनी जंग का आनंद लिया लेकिन उन्हें कोहली को गेंदबाजी करना थोड़ा मुश्किल लगा।
एंडरसन ने 2003 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया था और पिछले सत्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहते हुए अपने शानदार करियर का अंत किया।
लंकाशर के इस खिलाड़ी को तेंदुलकर और कोहली दोनों के खिलाफ सफलता मिली। उन्होंने इन दोनों भारतीय सुपरस्टार को क्रमशः नौ और सात बार आउट किया।
एंडरसन ने ‘टॉकस्पोर्ट’ से कहा, ‘‘कोहली के खिलाफ मुझे शुरुआत में कुछ सफलता मिली थी, जब वह पहली बार इंग्लैंड आए थे (2014 में)। मैंने इसका काफी फायदा उठाया, ऑफ स्टंप के बाहर की गेंद उनकी कमजोरी थी, इसका काफी फायदा उठाया और फिर अगली बार जब मैं उनके खिलाफ खेला (2018 में) तो उन्होंने स्पष्ट रूप से उस पर काम किया और यह एक अलग खिलाड़ी को गेंदबाजी करने जैसा था।’’
हालांकि यह ध्यान देने योग्य है कि तेंदुलकर और कोहली अपने करियर के अलग-अलग चरण में थे जब उन्हें एंडरसन की चुनौती का सामना करना पड़ा जो 42 साल की उम्र में भी काउंटी क्रिकेट खेल रहे हैं।
एंडरसन ने कहा, ‘‘वह (कोहली) वास्तव में अपने खेल को एक अलग स्तर पर ले गया जिसने ना केवल मेरे लिए बल्कि सामान्य रूप से सभी गेंदबाजों के लिए इसे बहुत मुश्किल बना दिया और मुझे लगता है कि मैंने पहली श्रृंखला में शायद उसे चार या पांच बार आउट किया और फिर अगली श्रृंखला में जब मैंने उसके खिलाफ खेला तो उसे आउट नहीं कर पाया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए सचिन के खिलाफ मुझे ऐसा नहीं लगा जैसे कोहली के साथ वर्चस्व में बदलाव हुआ, निश्चित रूप से बदलाव था और हां, मुझे गेंदबाजी करने के लिए वह काफी मुश्किल खिलाड़ी लगा क्योंकि उसके पास उस तरह की दृढ़ मानसिकता भी थी।’’
उन्होंने तेंदुलकर को ‘भगवान जैसा’ व्यक्ति बताया जबकि कोहली एक ऐसे व्यक्ति थे जो आपका सामना करने के लिए तैयार रहते थे।
एंडरसन ने कहा, ‘‘कोहली जंग में उतरना चाहता था। वह चाहता था कि आप (यह) जानें। वह बहुत प्रतिस्पर्धी है और उस शुरुआती सफलता के बाद उसके खिलाफ खेलना बहुत मुश्किल था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कोहली खिलाड़ी के रूप में सचिन से थोड़ा अलग थे जो बहुत ही सौम्य स्वभाव के थे। क्रीज पर बहुत शांत थे और विराट अपनी भावनाओं को अधिक अभिव्यक्त करते थे और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करते थे और आप इसे उनकी कप्तानी में देख सकते हैं, जब वह विकेट लेने का जश्न मनाते थे।’’
भाषा सुधीर आनन्द
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