ग्वालियर, 16 जून (भाषा) मध्यप्रदेश में अस्थायी गर्भनिरोधक पद्धति के उपयोग से परिवार नियोजन के परिदृश्य में सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहे हैं। विशेषज्ञों ने सोमवार को यह दावा किया।
उन्होंने कहा कि अस्थायी गर्भनिरोधक पद्धति में 6.9 प्रतिशत (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) से 12.9 प्रतिशत (एनएफएचएस-5) तक उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो दर्शाता है कि दंपति अपने परिवार की योजना बनाने और बच्चे पैदा करने के सही समय का निर्धारण करने के बारे में तेजी से निर्णय ले रहे हैं।
ये विशेषज्ञ ‘विकल्प परियोजना’ द्वारा आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यशाला का उद्देश्य मीडिया प्रतिनिधियों को ग्रामीण भारत, विशेषकर मध्यप्रदेश एवं ग्वालियर के संदर्भ में, सरकार के प्रयासों से परिवार नियोजन और मातृत्व से जुड़े बदलते व्यवहारों और प्राथमिकताओं की जानकारी देना था, ताकि मीडिया इन विषयों को अधिक संवेदनशीलता और सटीकता के साथ जन-जन तक पहुंचा सके।
क्षेत्रीय कार्यालय स्वास्थ्य सेवाएं (ग्वालियर संभाग) की क्षेत्रीय निदेशक डॉ नीलम सक्सेना ने कहा, ‘‘कम उम्र में बच्चा होने पर महिला का शरीर गर्भधारण और प्रसव के लिए तैयार नहीं होता। इसलिए पहले बच्चे के जन्म में कम से कम दो साल कि देरी करने कि सलाह दी जाती है जो कि मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है।’’
उन्होंने कहा कि इससे गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा कम होता है और शिशु के सुरक्षित जन्म की संभावना बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरे बच्चे के बीच अंतर रखना भी मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दो बच्चों के बीच कम से कम तीन वर्ष का अंतर रखने से मां के शरीर को पुनः गर्भावस्था के लिए तैयार होने का समय मिलता है, एनिमिया (हीमोग्लोबिन की कमी) से भी बचाव होता है, जिससे गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जोखिम कम होते हैं।’’
क्षेत्रीय कार्यालय स्वास्थ्य सेवाएं (ग्वालियर संभाग) के परिवार कल्याण उप निदेशक डॉ महेश चंद्र व्यास ने कहा कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि नवदम्पति या एक संतान वाले दंपतियों को सही समय पर परिवार नियोजन के महत्व के बारे में जानकारी मिले और वे अपने जीवन की परिस्थितियों के अनुसार सुरक्षित और अस्थाई गर्भनिरोधक साधन चुन सकें।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके लिए समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को मजबूत किया जा रहा है। उपकेंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आवश्यक संसाधन और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। साथ ही, समाज में संवाद और जागरूकता बढ़ाने के लिए सास-बहू सम्मेलन और ग्रामीण स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस जैसे आयोजनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि महिलाओं और परिवारों को सही जानकारी, सुविधा और भरोसा एक साथ मिल सके।’’
उन्होंने कहा कि सरकार की यही कोशिश है कि हर दंपत्ति को जानकारी और विकल्प दोनों समय पर मिलें, जिससे मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य बेहतर हो सके।
भाषा ब्रजेन्द्र सुरभि
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