नयी दिल्ली, 17 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अभिनेता कमल हासन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ को राज्य के सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं किये जाने को लेकर कर्नाटक सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि भीड़ और नैतिकता के तथाकथित पहरेदारों को सड़कों पर हंगामा करने इजाज़त नहीं दी जा सकती।
न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि कानून का शासन स्थापित किया जाना चाहिए और लोगों को फिल्म देखने से रोकने के लिए उनके सिर पर बंदूक नहीं तानी जा सकती।
न्यायमूर्ति भुइयां ने कर्नाटक सरकार के वकील से कहा, ‘‘हम भीड़ और नैतिकता के तथाकथित पहरेदारों को सड़कों पर कब्जा करने की इजाजत नहीं दे सकते। कानून का शासन कायम रहना चाहिए। हम ऐसा नहीं होने दे सकते। अगर किसी ने कोई बयान दिया है, तो उसका जवाब बयान से दीजिए। अगर किसी ने कुछ लिखा है, तो आप उसका जवाब कुछ लिखकर दे सकते हैं।’’
उन्होंने वकील को 18 जून तक मामले पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि भले ही फिल्म प्रदर्शित होने पर लोग इसे न देखें, लेकिन उन्हें इस डर में नहीं रखा जा सकता कि सिनेमाघर जला दिए जाएंगे।
कर्नाटक में फिल्म प्रदर्शित न किए जाने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता एम महेश रेड्डी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ए वेलम ने कहा कि राज्य ने धमकी देने वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘‘कानून के शासन के मुताबिक, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाण पत्र प्राप्त कर चुकी कोई भी फिल्म अवश्य रिलीज होनी चाहिए और राज्य को इसकी स्क्रीनिंग सुनिश्चित करनी चाहिए। आप लोगों के सिर पर बंदूक रखकर यह नहीं कह सकते कि फिल्म मत देखो।’’
न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता कि सिनेमाघरों को जलाए जाने के डर से फिल्म न दिखाई जाए। लोग फिल्म न देखें। यह एक अलग मामला है। हम ऐसा कोई आदेश नहीं दे रहे हैं कि लोगों को फिल्म देखनी चाहिए। लेकिन फिल्म रिलीज होनी चाहिए।’’
कर्नाटक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि फिल्म निर्माता द्वारा दायर याचिका पर 20 जून को उच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है। इसके बाद पीठ ने उच्च न्यायालय में लंबित याचिका को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने का संकेत दिया।
शीर्ष अदालत ने 3 जून को उच्च न्यायालय द्वारा की गई उन टिप्पणियों की भी आलोचना की, जिसमें कमल हासन से उस बयान के लिए माफ़ी मांगने को कहा गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘कन्नड़ भाषा का जन्म तमिल भाषा से हुआ है।’’
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा ‘‘उनसे (हासन से) माफी के लिए कहना उच्च न्यायालय का काम नहीं है।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह मुद्दा कानून के शासन और मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। इसलिए, यह न्यायालय हस्तक्षेप कर रहा है। उच्चतम न्यायालय का उद्देश्य कानून के शासन और मौलिक अधिकारों का संरक्षक होना है। यह केवल एक फिल्म के बारे में नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि यदि कमल हासन ने कुछ भी अप्रिय कहा है, तो उसे अटल सत्य नहीं माना जा सकता और कर्नाटक के प्रबुद्ध लोगों को इस पर बहस करनी चाहिए थी और कहना चाहिए था कि वह गलत थे।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘‘व्यवस्था में कुछ गड़बड़ है, एक व्यक्ति बयान देता है और उसे अंतिम सत्य मान लिया जाता है। इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए। लोगों को कहना चाहिए कि वह गलत हैं।’’
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, ‘‘बेंगलुरु के सभी प्रबुद्ध लोग बयान जारी कर सकते हैं कि वह (हासन) गलत है। धमकियों का सहारा क्यों लिया जाना चाहिए?’’
कानून के शासन के महत्व को रेखांकित करते हुए, पीठ ने राज्य पर फिल्म की रिलीज सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी डाल दी, जिसे सीबीएफसी प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ है।
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि फिल्म निर्माताओं ने खुद ही राज्य में फिल्म को रिलीज न करने का फैसला किया है, जब तक कि हासन कर्नाटक फिल्म चैंबर के साथ इस मुद्दे को हल नहीं कर लेते। इस पर पीठ ने कहा कि लोगों को अलग-अलग विचार रखने का अधिकार है, लेकिन इस कारण से किसी फिल्म को प्रदर्शित किए जाने से नहीं रोका जा सकता है।
न्यायमूर्ति भुइयां ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ कविता की क्लिप पोस्ट करने के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के 28 मार्च के फैसले का हवाला दिया और कहा कि फैसले में शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के उस निर्णय का हवाला दिया है, जिसमें ‘‘मी नाथूराम गोडसे बोलतोय’’ नाटक पर प्रतिबंध को खारिज कर दिया गया था।
उन्होंने कहा, ‘‘(इसमें) राष्ट्रपिता के बारे में आलोचनात्मक संदर्भ थे। इस पर हंगामा हुआ और महाराष्ट्र सरकार ने नाटक पर प्रतिबंध लगा दिया। उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जा सकता है। लेकिन आप एक अलग दृष्टिकोण को रोक नहीं सकते। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।’’
शीर्ष अदालत 19 जून को सुनवाई जारी रखेगी।
शीर्ष अदालत ने कर्नाटक सरकार को राज्य में फिल्म की रिलीज के बारे में जानकारी देने के लिए एक दिन का समय दिया और कहा कि एक बार जब फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से मंजूरी मिल जाती है, तो उसे सभी राज्यों में रिलीज किया जाना चाहिए।
‘ठग लाइफ’ पांच जून को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई।
वर्ष 1987 में आई ‘नायकन’ के बाद हासन और फिल्मकार मणिरत्नम की तमिल फिल्म ’ठग लाइफ’ कर्नाटक में रिलीज नहीं हो सकी, क्योंकि 70 वर्षीय हासन ने कन्नड़ भाषा के बारे में एक टिप्पणी की थी, जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।
उच्च न्यायालय ने हासन की उस टिप्पणी की कड़ी आलोचना की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘कन्नड़ भाषा की उत्पत्ति तमिल से हुई है।’’ उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि ‘‘एक बार माफ़ी मांगने पर स्थिति सुलझ सकती थी।’’
कमल हासन द्वारा चेन्नई में अपनी फिल्म के प्रचार कार्यक्रम में कथित तौर पर की गई इस टिप्पणी से कर्नाटक में तीखी प्रतिक्रिया हुई, जिसके बाद कर्नाटक फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स (केएफसीसी) ने घोषणा की कि जब तक हासन माफ़ी नहीं मांगते, तब तक राज्य में फिल्म प्रदर्शित नहीं की जाएगी।
शीर्ष अदालत कर्नाटक में फिल्म की रिलीज न होने को चुनौती देने वाले एम महेश रेड्डी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
रेड्डी ने अधिवक्ता ए वेलन के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में दलील दी कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा फिल्म को प्रमाण पत्र दिए जाने के बावजूद, राज्य सरकार ने मौखिक निर्देशों और पुलिस हस्तक्षेप के माध्यम से सिनेमाघरों में इसकी रिलीज को कथित तौर पर रोक दिया। याचिका में कहा गया है कि इस संबंध में कोई आधिकारिक निषेधाज्ञा जारी नहीं की गई है तथा इस संबंध में कोई प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की गई है।
उन्होंने तर्क दिया कि राज्य द्वारा इस तरह की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंवैधानिक प्रतिबंध है।
भाषा
मनीषा दिलीप
दिलीप