ढाका, 18 जून (भाषा) बांग्लादेश में शरण लिये हुए रोहिंग्या समुदाय के बीच से एक सशस्त्र समूह ने म्यांमा के रखाइन क्षेत्र पर नियंत्रण रखने वाली अराकान आर्मी के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है और वहां से सरकारी सैनिकों को खदेड़ रही है। इंटरनेशनल क्रासिस ग्रुप (आईसीजी) ने बुधवार को यह जानकार दी।
आईजीसी ने कहा कि समूह ने म्यांमा के रखाइन राज्य की सीमा से लगे दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में अपने अस्थायी शिविरों में साथी रोहिंग्या की भर्ती शुरू कर दी है।
लेकिन डर है कि यह कदम उल्टा पड़ सकता है, जिससे म्यांमा के समाज में मुस्लिम अल्पसंख्यक जातीय समूह की उपस्थिति और अधिक अवांछित हो जाएगी और बांग्लादेश द्वारा उन्हें रखाइन वापस भेजने के प्रयास विफल हो जाएंगे।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश में वर्तमान में 13 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान हैं।
ये लोग 2017 में म्यांमा की क्रूर सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए भागकर बांग्लादेश आए थे। म्यांमा की सैन्य कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र ने “जातीय सफाए का एक उदाहरण” करार दिया था।
आईसीजी की रिपोर्ट ‘बांग्लादेश/म्यांमा: रोहिंग्या विद्रोह के खतरे’ में कहा गया है, ‘इस बीच, रोहिंग्या सशस्त्र समूहों ने पहले ही रखाइन राज्य में अराकान आर्मी पर हमले शुरू कर दिए हैं और सीमा पर शिविरों में लड़ाकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।’
लेकिन आईसीजी ने कहा कि इस विद्रोह के और तीव्र होने से सभी संबंधित पक्षों- ‘रोहिंग्या नागरिकों, अराकान सेना और बांग्लादेश’ को बहुत नुकसान होगा, क्योंकि ढाका अराकान सेना के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि बांग्लादेश के साथ म्यांमा की सरहद अब पूरी तरह से राज्येतर तत्वों के नियंत्रण में है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इससे रखाइन राज्य में बौद्ध बहुसंख्यकों और रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच और अधिक रक्तपात का खतरा बढ़ जाएगा, साथ ही इस बात की संभावना भी बढ़ जाएगी कि अधिक संख्या में रोहिंग्या संघर्ष के कारण सीमा पार कर बांग्लादेश भाग जाएंगे।’’
आईसीजी ने कहा, ‘‘म्यांमा के मामले में बांग्लादेश का मुख्य उद्देश्य रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना है, जिनकी संख्या अब दस लाख से ज़्यादा है। सीमा के दोनों ओर राजनीतिक उथल-पुथल ने इस लक्ष्य को नहीं बदला है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘(बांग्लादेश की) अंतरिम सरकार ने रखाइन राज्य में एक मानवीय गलियारा स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है और संकट का समाधान निकालने के उद्देश्य से, सितंबर के अंत में महासभा की बैठक के दौरान रोहिंग्या पर एक ‘उच्च-स्तरीय सम्मेलन’ आयोजित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र से सफलतापूर्वक पैरवी की है।’
हालांकि, कई बांग्लादेशी सुरक्षा और विदेशी संबंध विशेषज्ञ आईसीजी रिपोर्ट को क्षेत्र में भू-राजनीति के संबंध में पश्चिमी विचारों और इच्छाओं के प्रतिबिंब के रूप में देखते हैं।
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नोमान सुरेश
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