(मनीष सैन और माणिक गुप्ता)
नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) महिला और ‘पति की कथित हत्यारिन’ की दोहरी पहचान के बीच झूलती ‘‘सोनम, मुस्कान, शिवानी, रवीना, राधिका…’’ जैसी महिलाओं ने पिछले कुछ महीनों में न केवल सुर्खियां और बदनामी बटोरी, बल्कि नारीत्व एवं अपराध के बारे में पारंपरिक धारणाओं को भी चुनौती दी है।
देश के विभिन्न हिस्सों की ये युवतियां राष्ट्रीय सुर्खियों से दूर उस वक्त तक सामान्य जिंदगी जी रही थीं, जब तक कि उन्हें अपने पतियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार नहीं कर लिया गया। वे छोटे शहरों की महिलाएं थीं, जिन्होंने निर्मम तरीके से घिसे-पिटे अंदाज को समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप ये सभी सनसनीखेज सुर्खियां बनीं और इन्हें लेकर जिज्ञासा पैदा हुई। इन घटनाओं के कारण महिला-विरोधी ‘मीम’ और चुटकुलों को बढ़ावा मिला।
सवाल तमाम हैं- महिलाएं अपराध क्यों करती हैं? उनके साथ पुरुष अपराधियों से अलग व्यवहार क्यों किया जाता है? क्या वे सशक्तीकरण का प्रदर्शन कर रही हैं या यह संकेत दे रही हैं कि वे वास्तव में शक्तिहीन हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सामाजिक कलंक, कठोर लैंगिक भूमिकाओं और महिलाओं के लिए अवास्तविक मानकों का समागम है।
ब्रिटिश अपराध विज्ञानी फ्रांसेस हेडेनसन ने सशक्त सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए एक शब्द ढूंढ़ा है- ‘दोहरा विचलन सिद्धांत।’
दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू) के कुलपति और अपराध विज्ञान के प्रोफेसर जी एस बाजपेयी ने कहा कि अपराध करने वाली महिला ‘‘न केवल कानूनी मानदंड का उल्लंघन करती है, बल्कि लैंगिक मानदंड का भी उल्लंघन करती है।’’
बाजपेयी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे परवाह करने वाली और आज्ञाकारी हों। इस दृष्टि से एक महिला का अपराध करना असामान्य और असाधारण विचलन है। पुरुषों के लिए ऐसा नहीं है… । इसलिए जैसा कि कुछ विद्वानों ने इसे ‘दोहरा विचलन बताया है, ऐसी स्थिति में संबंधित महिलाओं को दोगुना दंडित किया जाना चाहिए।’ ऐसी महिला सिर्फ एक अपराधी नहीं, वह एक महिला अपराधी है।’’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4.45 लाख से अधिक अपराधों की सूचना दी। हालांकि, यह (ब्यूरो) महिलाओं द्वारा किए गए अपराधों की कोई अलग श्रेणी नहीं रखता है, क्योंकि उनकी संख्या कम है। फिर भी महिलाओं द्वारा किए गए गंभीर अपराध, चाहे उनकी संख्या कितनी भी कम क्यों न हो, अपना अलग प्रभाव डालते हैं।
हर घर में चर्चा का केंद्र बनी सोनम रघुवंशी को मंगलवार को उसके पति राजा रघुवंशी की हत्या की जांच के सिलसिले में मेघालय ले जाया गया। सोनम ने अपने पति की कथित तौर पर हत्या कर दी थी और इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इंदौर का यह जोड़ा हनीमून मनाने गया था, लेकिन दुल्हन ने कथित तौर पर अपने पूर्व प्रेमी और तीन हत्यारों के साथ राजा रघुवंशी की हत्या की साजिश रची थी।
इस साल मार्च में, मुस्कान रस्तोगी ने कथित तौर पर, अपने प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ मिलकर मेरठ में अपने पति सौरभ राजपूत की चाकू घोंपकर हत्या कर दी थी। बाद में उसके शरीर के टुकड़े कर दिए और अवशेषों को सीमेंट से भरे ड्रम में बंद कर दिया।
अप्रैल में, बिजनौर की शिवानी ने दावा किया कि दिल का दौरा पड़ने से उसके पति की मौत हो गई। बाद में पुलिस ने खुलासा किया कि उसने दीपक की गला घोंटकर हत्या की थी।
उसी महीने, भिवानी में यूट्यूबर रवीना ने कथित तौर पर अपने पति को एक पुरुष मित्र की मदद से मार डाला, क्योंकि उसने उनकी ‘अंतरंगता’ और उसकी सोशल मीडिया गतिविधियों पर आपत्ति जताई थी।
जून में ही, सांगली की महिला राधिका ने शादी के सिर्फ 15 दिन बाद ही अपने पति अनिल की कथित तौर पर हत्या कर दी। मीडिया जगत से जुड़ी इंद्राणी मुखर्जी पर 2012 में अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या का आरोप है। केरल की जॉली जोसेफ ने कथित तौर पर संपत्ति हड़पने के लिए 14 साल में परिवार के छह सदस्यों को जहर देकर मार डाला।
उन्नीसवीं सदी में कोलकाता में त्रोलोक्य देवी नामक एक वेश्या भारत की पहली ज्ञात महिला ‘सीरियल किलर’ थी, जो महिलाओं, मुख्य रूप से यौनकर्मियों को बहला-फुसलाकर उनके गहने लूटने के लिए उनकी हत्या कर देती थी।
एक साथी के साथ पकड़े जाने से पहले उसने कम से कम पांच महिलाओं की हत्या की और उसे 1884 में फांसी की सजा दी गयी थी।
महिलाओं द्वारा अपने पतियों की हत्या की हालिया घटनाओं ने सोशल मीडिया पर आक्रोश का तूफान खड़ा कर दिया है, साथ ही मीडिया में संबंधित घटनाओं को लंबा कवरेज मिल रहा है, जिसके जरिये अक्सर महिलाओं को स्वाभाविक रूप से दुर्भावनापूर्ण और पुरुषों को दुष्ट जीवनसाथी के असहाय शिकार के रूप में दिखाया गया है। सोशल मीडिया वेबसाइट पर घृणित और स्त्री-विरोधी रवैये का एक उदाहरण है- कुछ साल पहले वायरल हुआ ‘सोनम बेवफा है’ मीम।
महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि जनता का ध्यान गलत दिशा में जा रहा है।
भयना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह अपनी भूमिकाओं से बाहर निकल रही महिलाओं के प्रति हमारी असहजता को प्रदर्शित करता है। इस तरह के सामाजिक दमन से अंततः आक्रोश भड़केगा। मीडिया इसे सनसनीखेज बना रहा है।’’
सोनम रघुवंशी मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सोनम के लिए हत्या की साजिश रचना ‘किसी से प्यार’ की बात स्वीकार करने से आसान हो गया।
बाजपेयी ने कहा, ‘‘हमारे समाज में महिलाओं को इस तरह के मनोवैज्ञानिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है। उसके अपराध का बचाव नहीं किया जा रहा है, लेकिन हमें मूल कारणों की जांच करने की जरूरत है- हमारी संस्कृति महिलाओं को एक निश्चित तरीके से व्यवहार करने के लिए कितनी गहराई से तैयार करती है।’’
आपराधिक मनोवैज्ञानिक दीप्ति पुराणिक के अनुसार, सामाजिक संबंधों के खिलाफ इस तरह के ‘आक्रोश’ के पीछे कई कारण हो सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘जब शादी की बात आती है तो संस्कृति और समाज आमतौर पर बहुत सारी भूमिकाएं निभाते हैं। लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने के लिए मजबूर किया जाता है। बहुत से लोग बहुत कम उम्र में शादी कर लेते हैं और उस उम्र में वे वैवाहिक संबंधों के साथ आने वाली ज़िम्मेदारियों को समझने के लिए भावनात्मक परिपक्वता के स्तर तक नहीं पहुंच पाते हैं।’’
भयाना ने पुराणिक की बात से इत्तेफाक जताया।
उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और आंतरिक संघर्षों की अनदेखी की जाती है। बड़े होने पर उन्हें जिस दमन का सामना करना पड़ता है, संचार बाधाएं और उन पर रखी जाने वाली अवास्तविक अपेक्षाएं, ये सब बढ़ता जाता है।’’
भाषा सुरेश अविनाश
अविनाश