बेंगलुरु, 19 जून (भाषा) कर्नाटक मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को राज्य में विभिन्न आवास योजनाओं के तहत अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का निर्णय लिया।
राज्य सरकार के अनुसार, यह बढ़ा हुआ कोटा मुसलमान, ईसाई और जैन समुदाय सहित सभी अल्पसंख्यकों को लाभान्वित करेगा।
हाल ही में सार्वजनिक निविदाओं में मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की राज्य सरकार की पहल के बाद यह कदम उठाया गया है। उक्त पहल की विपक्षी भाजपा ने आलोचना की थी।
भाजपा ने राज्य की कांग्रेस सरकार पर धर्म आधारित आरक्षण के माध्यम से संविधान को ‘‘कमजोर’’ करने का आरोप लगाया है।
उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि मंत्रिमंडल के निर्णय का प्राथमिक उद्देश्य समाज के गरीब वर्गों की मदद करना है।
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए राज्य के कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री एच.के. पाटिल ने कहा, ‘‘राज्य भर में शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में आवास विभाग द्वारा लागू की जा रही विभिन्न आवास योजनाओं के तहत अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह निर्णय इसलिए लिया गया कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के अपर्याप्त आवास को ध्यान में रखते हुए कुछ निर्देश दिए थे तथा कर्नाटक सरकार ने भी राज्य में अल्पसंख्यकों के बीच बेघरों की उच्च संख्या पाई थी।’’
आरक्षण में वृद्धि के वैज्ञानिक आधार के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति, सामान्य वर्ग और अन्य में बेघरों की कुल संख्या के बारे में रिपोर्टें हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने (अल्पसंख्यकों के लिए) आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या जनसंख्या के आधार पर सभी समुदायों को समान सुविधाएं दी जाएंगी, पाटिल ने कहा कि जहां भी बेघरों की संख्या अधिक है, वहां ये सुविधाएं दी जाएंगी।
उन्होंने कहा, ‘‘राज्यों को कुछ आवास योजनाओं का आवंटन करते समय केंद्र की ओर से कुछ निर्देश दिए गए थे, सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र द्वारा कुछ निर्देश दिए जा रहे हैं, इन सभी बातों और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है।’’
उन्होंने कहा कि इसके लिए नियमों और कानून में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि क्या इस निर्णय से यह धारणा बनेगी कि इसका उद्देश्य मुसलमानों को लाभ पहुंचाना है क्योंकि राज्य में अन्य अल्पसंख्यकों की संख्या अधिक नहीं है, उन्होंने कहा, ‘‘हम उन लोगों को जवाब नहीं दे सकते जो धारणा बना रहे हैं और जो गरीबों के लिए घर उपलब्ध कराने का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं केवल इतना कह सकता हूं कि सरकार का इरादा उन समुदायों को सामाजिक न्याय और अधिक लाभ प्रदान करना है जहां बेघरों की संख्या अधिक है…यह केवल आवास के लिए है।’’
मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) और अन्य के लिए निर्दिष्ट आवास योजनाओं पर लागू नहीं होता है।
इस निर्णय की आलोचना करते हुए प्रदेश भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार हमेशा ‘‘संविधान की अनदेखी’’ करने के लिए तैयार रहती है।
प्रदेश भाजपा ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘हालांकि संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन कर्नाटक की कांग्रेस सरकार बार-बार इसका उल्लंघन कर रही है। आवास योजनाओं के तहत मुसलमानों के लिए अलग से 15 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करना पूरी तरह से असंवैधानिक है। कांग्रेस, जिसे निविदाओं में मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए अदालत ने फटकार लगाई है, उसे इस मामले में भी फटकार मिलेगी।’’
मंत्रिमंडल के फैसले का बचाव करते हुए शिवकुमार ने मीडिया से कहा कि आवास योजनाओं के तहत बनाए गए कई आवास खाली पड़े हैं।
उन्होंने कहा कि चूंकि शहरी इलाकों में अल्पसंख्यकों की आबादी दूसरे इलाकों के मुकाबले ज़्यादा है, इसलिए उन्हें इसका फायदा उठाने का मौका दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘शहरी इलाकों में अल्पसंख्यकों की आबादी अधिक है और विभिन्न आवास योजनाओं के तहत उनका कोटा 10 प्रतिशत था। कई आवास खाली थे और उनमें कोई नहीं रह रहा था, इन घरों के लिए कुछ प्रतिशत राशि का भुगतान अनिवार्य है।’’
भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘कोई कुछ भी कहे, हम गरीब तबके की मदद करना चाहते हैं। जब मकानों के लिए आवेदक ही नहीं हैं तो आप क्या कर सकते हैं? क्या मैं इमारतों को खाली रख सकता हूं? हम ऐसा नहीं कर सकते।’’
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