नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह के अनुसार, अगर दुनिया में वर्तमान दर से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता रहा, तो वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का कार्बन बजट तीन वर्षों में ही समाप्त हो जाएगा।
कार्बन बजट से तात्पर्य कार्बन डाइऑक्साइड की कुल मात्रा से है जिसे ग्रह उत्सर्जित कर सकता है। फिलहाल तापमान एक निश्चित सीमा से नीचे रहने की अच्छी संभावना है। 2015 में हुए पेरिस जलवायु सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन की सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
कार्बन बजट पार करने का मतलब यह नहीं है कि 1.5 डिग्री की सीमा तुरंत पार हो जाएगी। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं की गई तो दुनिया बहुत जल्द कार्बन बजट पार कर जाएगी।
‘अर्थ सिस्टम साइंस डेटा’ पत्रिका में प्रकाशित नवीनतम ‘वैश्विक जलवायु परिवर्तन संकेतक’ अध्ययन में यह भी पाया गया कि यदि कार्बन उत्सर्जन वर्तमान स्तर पर रहा तो 2048 तक 2 डिग्री सेल्सियस का कार्बन बजट पार हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि मानवीय गतिविधियों के कारण पिछले एक दशक में हर साल लगभग 53 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ा गया है, और इसका मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई से होने वाले उत्सर्जन का बढ़ना है।
पिछले 10 सालों (2015 से 2024) में धरती का तापमान औद्योगिक युग शुरू होने से पहले के तापमान से 1.24 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तापमान में 1.22 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि मानवीय गतिविधियों के कारण हुई है।
भाषा जोहेब मनीषा
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