(जेना जॉर्डन, जॉर्जिया प्रौद्योगिकी संस्थान/रशेल व्हिटलार्क, जॉर्जिया प्रौद्योगिकी संस्थान)
अटलांटा, 20 जून (द कन्वरसेशन) ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य क्षमताओं को खत्म या कमजोर करने के लिए 13 जून को शुरू किए गए इजराइल के ‘आपरेशन राइजिंग लॉयन’ में कम से कम 14 परमाणु वैज्ञानिकों के मारे जाने की आशंका है।
मारे गए लोगों में ईरान के इस्लामिक आजाद विश्वविद्यालय के प्रमुख और सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी मोहम्मद मेहदी तेहरानची और ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन का नेतृत्व करने वाले परमाणु इंजीनियर फेरेयदून अब्बासी-दवानी भी शामिल थे।
भौतिकी और इंजीनियरिंग के ये विशेषज्ञ मोहसिन फखरीजादेह के संभावित उत्तराधिकारी थे, जिन्हें ईरान के परमाणु कार्यक्रम के वास्तुकार के रूप में माना जाता था। नवंबर 2020 में एक हमले में उनकी मौत हो गई थी, जिसके लिए कई लोग इजराइल को दोषी मानते हैं।
दो राजनीतिक विज्ञानियों के रूप में हम वैज्ञानिकों को निशाना बनाए जाने बारे में एक किताब लिख रहे हैं। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि परमाणु वैज्ञानिकों को परमाणु युग की शुरुआत से ही निशाना बनाया जाता रहा है। हमने 1944 से 2025 तक वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लगभग 100 मामलों का डेटा एकत्र किया है।
ईरान के वैज्ञानिकों के खिलाफ सबसे हालिया हत्या अभियान कई तरीकों से पुरानी घटनाओं से अलग है। इजराइल के हालिया हमले में कई परमाणु विशेषज्ञों को निशाना बनाया गया। ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों, वायु रक्षा प्रणालियों और ऊर्जा अवसंरचना को नष्ट करने के लिए सैन्य बल के साथ ऐसा किया गया।
इसके अलावा, पिछले गुप्त अभियानों के विपरीत, इजराइल ने तुरंत ही हत्याओं की जिम्मेदारी ली है।
लेकिन हमारा शोध संकेत देता है कि वैज्ञानिकों को निशाना बनाने का कोई फायदा नहीं होता। किसी वैज्ञानिक को खत्म करने से परमाणु कार्यक्रम में देरी तो हो सकती है, लेकिन कोई कार्यक्रम पूरी तरह से खत्म होने की संभावना नहीं होती। बल्कि इससे किसी देश की परमाणु हथियार बनाने की इच्छा बढ़ भी सकती है।
इसके अलावा, वैज्ञानिकों को निशाना बनाने से वैधता और नैतिकता संबंधी चिंताओं के कारण प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी हो सकती है।
हमारे डेटा में, हमने निशाना बनाए जाने को ऐसे मामलों के रूप में वर्गीकृत किया है, जिनमें वैज्ञानिकों को पकड़ लिया गया, धमकाया गया, घायल किया गया या मार दिया गया। निशाना बनाने वालों ने विरोधियों को सामूहिक विनाश के हथियार हासिल करने से रोकने की कोशिश के तहत ऐसा किया। अलग-अलग समय पर, कम से कम चार देशों ने राष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रमों पर काम कर रहे नौ वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है।
परमाणु वैज्ञानिकों पर सबसे ज़्यादा हमले कथित तौर पर अमेरिका और इजराइल ने किए हैं। लेकिन ऐसे हमलों के पीछे ब्रिटेन और सोवियत संघ का भी हाथ रहा है।
इस बीच, मिस्र, ईरान और इराकी परमाणु कार्यक्रमों के लिए काम करने वाले वैज्ञानिक 1950 के बाद से सबसे अधिक बार निशाना बने हैं। वर्तमान इजराइली अभियान से पहले, ईरानी परमाणु कार्यक्रम में शामिल 10 वैज्ञानिक हमलों में मारे जा चुके हैं।
दूसरे देशों के नागरिकों को भी निशाना बनाया गया है: 1980 में, इजराइल की खुफिया सेवा मोसाद ने कथित तौर पर इराकी परमाणु परियोजना में शामिल यूरोपीय लोगों के लिए चेतावनी देते हुए इतालवी इंजीनियर मारियो फियोरेली के घर और उनकी कंपनी एसएनआईए टेकइंट पर बमबारी की थी।
इस इतिहास को देखते हुए, यह तथ्य कि इजराइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हमला किया, अपने आप में आश्चर्यजनक नहीं है।
ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना, अलग-अलग समय में इजराइली प्रधानमंत्रियों का रणनीतिक लक्ष्य रहा है। क्षेत्रीय परिदृश्य और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर आगे बढ़ने के कारण विशेषज्ञ 2024 के मध्य से ही इजराइली सैन्य अभियान की बढ़ती संभावना के बारे में चेतावनी दे रहे थे।
तब तक पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन नाटकीय रूप से बदल चुका था। इजराइल ईरानी छद्म संगठनों हमास और हिजबुल्लाह के नेतृत्व और बुनियादी ढांचे को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर चुका था।
बाद में इजराइल ने ईरान के आसपास तथा प्रमुख परमाणु प्रतिष्ठानों के निकट हवाई सुरक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया। सीरिया में असद शासन के पतन के कारण ईरान को अपना एक और पुराना सहयोगी खोना पड़ा। इन सभी घटनाक्रमों ने ईरान को काफी कमजोर कर दिया, जिससे बाहरी हमलों का सामना करने में मुश्किलें आईं। इसके अलावा उसका वह छद्म नेटवर्क भी खत्म हो गया है, जिससे शत्रुता की स्थिति में ईरान के पक्ष में जवाबी कार्रवाई की उम्मीद की जाती थी।
अपने छद्म संगठनों और पारंपरिक सैन्य क्षमता के कमजोर हो जाने के बाद ईरान के नेताओं ने सोचा होगा कि अपनी संवर्धन क्षमता बढ़ाना ही आगे बढ़ने के लिए सबसे अच्छा विकल्प होगा।
इजराइल के हालिया हमले से पहले के महीनों में, ईरान ने अपनी परमाणु उत्पादन क्षमता का विस्तार करते हुए यूरेनियम संवर्धन 60 प्रतिशत से आगे बढ़ा दिया, जो हथियार बनाने के लिए जरूरी स्तर से थोड़ा कम था।
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले के पहले कार्यकाल के दौरान ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एक बहुपक्षीय अप्रसार समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था।
दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने ईरान के साथ नयी कूटनीति अपनाकर अपना रुख बदल लिया, लेकिन अब तक ये वार्ताएं किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रही हैं – और युद्ध के कारण निकट भविष्य में इन्हें स्थगित किया जा सकता है।
हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ ने पाया था कि ईरान परमाणु अप्रसार दायित्वों का पालन नहीं कर रहा। जवाब में, ईरान ने घोषणा की थी कि वह उन्नत सेंट्रीफ्यूज तकनीक और एक तीसरा संवर्धन संयंत्र स्थापित करके अपनी संवर्धन क्षमता को और बढ़ा रहा है।
कुछ देश पहले से ही गुप्त रूप से व्यक्तिगत तौर पर वैज्ञानिकों को निशाना बनाते रहे हैं। लेकिन हाल ही में कई वैज्ञानिकों पर खुलेआम हमला हुआ और इजराइल ने जिम्मेदारी लेते हुए हमलों का उद्देश्य भी बताया।
वैज्ञानिकों के खिलाफ इस तरह के हमले ऐतिहासिक रूप से कम तकनीकी और कम लागत वाले होते हैं। इसमें बंदूकधारियों, कार बम या दुर्घटनाओं के जरिए वैज्ञानिकों की हत्या की जाती है या उन्हें घायल कर दिया जाता है। सबसे हालिया हमलों में जान गंवाने वाले अब्बासी तेहरान में 2010 में हुए कार बम विस्फोट में बच गए थे।
हालांकि, फखरीजादेह की हत्या समेत कुछ अपवाद भी हैं, जिसमें रिमोट से संचालित मशीन गन को तस्करी करके ईरान पहुंचाया गया था।
वैज्ञानिकों पर हमला करने के पीछे इजरायल का तर्क
परमाणु वैज्ञानिकों को क्यों निशाना बनाया गया?
विदेश नीति में, अगर कोई देश किसी दूसरे देश को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना चाहता है, तो उसके लिए कई तरीके मौजूद हैं। वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के साथ-साथ प्रतिबंध, कूटनीति, साइबर हमले और सैन्य बल का भी इस्तेमाल किया जाता है।
वैज्ञानिकों को निशाना बनाए जाने से किसी देश की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक विशेषज्ञता खत्म हो सकती है और लागत बढ़ सकती है जिससे परमाणु हथियार बनाने में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के समर्थकों का तर्क है कि ऐसा करने से किसी देश के प्रयास कमजोर हो सकते हैं, उसे परमाणु विकास जारी रखने से रोका जा सकता है।
इसलिए वैज्ञानिकों को निशाना बनाने वाले देशों का मानना है कि ऐसा करना किसी विरोधी के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करने का एक प्रभावी तरीका है। दरअसल, इजराइली रक्षा बलों ने हाल के हमलों को ईरान की “सामूहिक विनाश के हथियार हासिल करने की क्षमता के लिए एक महत्वपूर्ण झटका’ बताया।
हो सकता है कि ईरान के अंदर हजारों और वैज्ञानिक काम कर रहे हों, जिससे यह सवाल उठता है कि उन्हें निशाना बनाना कितना फायदेमंद है। इसके अलावा, वैज्ञानिकों को निशाना बनाने को लेकर कानूनी और नैतिक चिंताएं भी हैं।
इसके अलावा, यह एक जोखिम भरा विकल्प है जो दुश्मन के परमाणु कार्यक्रम को बाधित करने में विफल साबित हो सकता है। इससे जनता में आक्रोश पैदा हो सकता है और वह प्रतिशोध की मांग कर सकती है।
वैज्ञानिकों को निशाना बनाना परमाणु प्रसार को रोकने का एक प्रभावी साधन है या नहीं, यह सवाल परमाणु युग की शुरुआत से ही उठता रहा है – और संभवतः आगे भी बना रहेगा।
(द कन्वरसेशन) जोहेब मनीषा
मनीषा