नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपातकाल के दौरान उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की शुक्रवार को आलोचना करते हुए इसे दुनिया के न्यायिक इतिहास का सबसे ‘‘काला अध्याय’’ करार दिया।
एक आधिकारिक बयान के अनुसार, धनखड़ ने कहा कि नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को खारिज करने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले ने तानाशाही और अधिनायकवाद को वैधता प्रदान की।
धनखड़ ने ‘‘पूरी मंत्रिपरिषद के नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए’’ तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर भी सवाल उठाया।
उपराष्ट्रपति ने यहां राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति, प्रधानमंत्री की सलाह पर काम नहीं कर सकते। संविधान बहुत स्पष्ट है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद है। यह उल्लंघन था लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ? इस देश के 1,00,000 से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में सलाखों के पीछे डाल दिया गया।’’
धनखड़ ने आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘वह ऐसा समय था जब संकट के समय लोकतंत्र का मूल तत्व ही ढह गया था। लोग न्यायपालिका की ओर (उम्मीद से) देखते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘देश के नौ उच्च न्यायालयों ने बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया कि आपातकाल हो या न हो, लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं और न्याय प्रणाली तक उनकी पहुंच है। दुर्भाग्य से उच्चतम न्यायालय ने सभी नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को पलट दिया और ऐसा फैसला दिया जो कानून के शासन में विश्वास रखने वाली दुनिया की हर न्यायिक संस्था के इतिहास में सबसे काला अध्याय है।’’
धनखड़ ने बताया कि फैसला यह था कि ‘‘कार्यपालिका की इच्छा पर है कि वह जितना समय तक उचित समझे, आपातकाल लगा सकती है।’’
उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला दिया था कि आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होते।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह उच्चतम न्यायालय के फैसले ने इस देश में तानाशाही, अधिनायकवाद और निरंकुशता को वैधता प्रदान की।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान सरकार ने हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का ‘‘उचित’’ फैसला किया है।
आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक लागू रहा था।
भाषा
सिम्मी अविनाश
अविनाश