कुर्ग, 20 जून (भाषा) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) कॉफी परिवेश के कार्बन उत्सर्जन को मापने में भारतीय कॉफी बोर्ड की सहायता कर रहा है। एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
कॉफी बोर्ड के अनुसंधान निदेशक एम सेंथिलकुमार ने कहा, “भारत में छायादार कॉफी बागानों में कार्बन पृथक्करण की मात्रा निर्धारित करने के लिए इसरो के साथ सहयोगात्मक अध्ययन शुरू किए गए हैं।”
इसरो इन आंकड़ों को एकत्र कर रहा है।
इसका उद्देश्य यूरोपीय संघ के वनों की कटाई विनियमन के बीच कॉफी के कार्बन उत्सर्जन को मापना है। इसके तहत कंपनियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि यूरोपीय संघ को निर्यात किए जाने वाले उत्पाद ऐसी भूमि पर उगाए गए हों, जहां 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई नहीं हुई हो।
इस विनियमन का कॉफी, कोको, सोया, लकड़ी के उत्पाद, रबर और इसके उत्पाद और चमड़े के सामान के निर्यात जैसे क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है।
इसमें यूरोपीय संघ में किसी कंपनी के वार्षिक कारोबार का चार प्रतिशत तक जुर्माना लगाने और गैर-अनुपालन के लिए लेनदेन से प्राप्त उत्पादों और राजस्व को जब्त करने का प्रस्ताव है।
उन्होंने यह भी कहा कि बोर्ड यहां कॉफी केंद्र में जलवायु सहिष्णुता और गैर-पारंपरिक प्रजनन के माध्यम से सूखा और कीट प्रतिरोधी किस्मों का उत्पादन करने के लिए उपाय कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन कॉफी उत्पादन के लिए खतरा बन गया है क्योंकि यह प्रति हेक्टेयर उपज और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
कॉफी उत्पादक, बोस मंदाना ने कहा कि कॉफी बोर्ड द्वारा उठाए गए उपायों से उत्पादकों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद उगाने में मदद मिल रही है, जिसकी जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग है।
जेनेटिक्स और प्लांट ब्रीडिंग की खंड प्रमुख जीना देवासी ने कहा कि वस्तु की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए बहुत काम चल रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत मुख्य रूप से छाया में उगाई जाने वाली कॉफी का उत्पादन कर रहा है, जो पर्यावरण के अनुकूल है।
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कॉफी निर्यात सालाना आधार पर 40 प्रतिशत बढ़कर 1.8 अरब डॉलर का हो गया। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का कॉफी उत्पादन 3.63 लाख टन था।
भाषा राजेश राजेश रमण अनुराग
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