(अपर्णा बोस)
नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) दुनिया भर में शुक्रवार को विश्व शरणार्थी दिवस मनाए जाने के बीच पिछले एक दशक में बेहतर जीवन की उम्मीद लेकर सीमा पार कर भारत आए सैकड़ों पाकिस्तानी हिंदू परिवार अब भी अनिश्चितता में जी रहे हैं।
दिल्ली के मजनू का टीला इलाके की कच्ची गलियों में रह रहे पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी अब भी भारतीय नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
पिछले साल आम चुनाव से पहले पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों के एक वर्ग को भारतीय नागरिकता मिल गई थी, लेकिन कई लोगों का आरोप है कि शरणार्थी शिविर की आबादी के केवल 10 प्रतिशत लोगों को ही अब तक नागरिकता दी गई है।
लगभग 10 साल पहले अपने पांच बच्चों के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आईं 55 वर्षीय मीना कुमारी ने दावा किया कि उनका पूरा परिवार अब भी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होने का इंतजार कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं 10 साल से यहां रह रही हूं। हमें बताया गया था कि हमें नागरिकता दी जाएगी। लेकिन अब तक कोई स्पष्टता नहीं है।’’
मीना ने कहा कि उन्होंने अपने चार बच्चों को पाकिस्तान में ही छोड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। हमने कई बार अधिकारियों से संपर्क किया है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। हमें समय-समय पर यह भी बताया गया है कि हमें इस शिविर से निकाला जा सकता है।’’
यमुना के पास स्थित शरणार्थी बस्ती में कच्चे घर और टूटे हुए सार्वजनिक शौचालय देखे जा सकते हैं।
विस्थापित समुदायों की दुर्दशा और उनकी सुरक्षा एवं सम्मान के अधिकार के महत्व को लेकर 20 जून का दिन विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
लगभग दो साल पहले अपने विस्तारित परिवार के साथ सिंध से आए 45 वर्षीय उदीश नारायण ने कहा कि नागरिकता नहीं मिलने के कारण रोजगार के अवसर भी प्रभावित होते हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘हमें फल बेचने या सड़क किनारे अपनी गाड़ियां खड़ी करने की अनुमति नहीं है। कोई काम नहीं है। हमें नागरिकता का वादा किया गया था, लेकिन हम अब भी इंतजार कर रहे हैं।’’
औपचारिक दस्तावेजों के अभाव के कारण कई निवासी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे।
भाषा शफीक नेत्रपाल
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