(गुंजन शर्मा)
नयी दिल्ली, 22 जून (भाषा) देश में 1977 की गर्मियों में, करीब 21 महीने के आपातकाल के समापन के बाद आम लोगों ने कांग्रेस के लगभग तीन दशकों के निर्बाध शासन पर विराम लगा दिया और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसने देश के पहले सरकारी कोला ‘डबल सेवन’ की शुरुआत कर दिया था राजनीतिक संदेश।
देश में नवनिर्वाचित जनता पार्टी सरकार ने कोका-कोला को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। सरकार ने कोका-कोला के बदले देश के पहले शीतल पेय पदार्थ ‘डबल सेवेन’ की शुरुआत की जिसे ‘सरकारी कोला’ के नाम से भी जाना जाता है।
“सरकारी कोला” देश में आर्थिक आत्मनिर्भरता और राजनीतिक परिवर्तन के प्रतीक के रूप में शुरू किया गया था।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाले जनता गठबंधन को सत्ता में लाने वाले ऐतिहासिक वर्ष (77) के नाम पर शुरू किया गया ‘डबल सेवन’ एक पेय पदार्थ से भी कहीं अधिक था; यह एक बोतल में एक राजनीतिक संदेश था। प्रगति मैदान में वार्षिक व्यापार मेले में स्वदेशी कोला को भव्य तरीके से बाजार उतारा गया।
‘डबल सेवन’ कोला का निर्माण और विपणन आधुनिक ब्रेड के निर्माताओं – मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज द्वारा किया जाता था। यह सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी थी। इस पेय पदार्थ को लोकप्रिय रूप से ‘सतहत्तर’’ (77) के रूप में जाना जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि तत्कालीन सांसद एच.वी. कामथ को “77” नाम सुझाने के लिए नकद पुरस्कार भी दिया गया था।
यह नाम इसलिए चुना गया क्योंकि 1977 भारत में बड़े बदलावों का साल था – जैसे इंदिरा गांधी सरकार और कोका-कोला का अंत। हालांकि 1978 तक “77” बिक्री के लिए तैयार नहीं था।
कोला प्रकरण में तत्कालीन उद्योग मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस मुख्य भूमिका में थे, जिन्होंने कोक और आईबीएम को भारत से बाहर करने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने तत्कालीन विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने से इनकार कर दिया था।
‘द टेस्ट दैट टिंगल्स’ टैगलाइन के साथ बाजार में उतारे गये इस कोला को, कैम्पा कोला, थम्स अप और ड्यूक जैसे ब्रांड से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, कोका-कोला की तरह जनता के बीच उतना उतनी लोकप्रियता नहीं मिल सकी।
‘डबल सेवन’ का अंत 1980 में इंदिरा गांधी के पुनः सत्ता में आने के साथ हुआ।
भाषा रंजन प्रशांत
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