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Sunday, June 22, 2025

आपातकाल: किसी ने भारतीय इतिहास की सबसे ‘शर्मनाक घटना’ तो किसी ने ‘सबसे अशुभ समय’ करार दिया

Newsआपातकाल: किसी ने भारतीय इतिहास की सबसे ‘शर्मनाक घटना’ तो किसी ने ‘सबसे अशुभ समय’ करार दिया

नयी दिल्ली/बेंगलुरु, 22 जून (भाषा) देश में आज से 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल की बरसी पर किसी ने इसे भारतीय इतिहास की ‘सबसे शर्मनाक घटना’, तो किसी ने ‘सबसे अशुभ दौर’ करार दिया है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हुकुमदेव नारायण यादव ने 1975 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान लगाए गए आपातकाल को ‘भारतीय इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना’ करार दिया।

यादव ने आरोप लगाया कि यह एक विशेष व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए लगाया गया था, जिसके निर्वाचन को अदालत ने अवैध घोषित किया था।

यादव ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘आज के युवाओं को गंभीरता से और निष्पक्ष रूप से सोचना चाहिए कि 1975 में आपातकाल क्यों लगाया गया था? उस समय न तो कोई आंतरिक विद्रोह था और न ही कोई बाहरी खतरा था। फिर उस समय आपातकाल क्यों लगाया गया? आपातकाल पूरी तरह से निजी हित, स्वार्थ और खुद को (इंदिरा गांधी) सत्ता में बनाए रखने के लिए लगाया गया था।’’

यादव ने कहा कि आपातकाल लगाने की नींव 12 जून 1975 को पड़ी थी, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ राज नारायण की याचिका पर अपना फैसला सुनाया था।

उन्होंने कहा कि यह फैसला पूरे न्यायिक प्रणाली और राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर था।

यादव ने आरोप लगाया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) ने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाया था। आपातकाल से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि उस समय वह बिहार विधानसभा के सदस्य थे।

भाजपा नेता यादव ने कहा कि 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था और ठीक एक महीने बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

यादव ने कहा कि उन्हें बिहार के दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बक्सर और मोतिहारी जेलों में रखा गया और उन पर जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर रेलवे पटरियों को उड़ाने की साजिश रचने का झूठा आरोप लगाया गया।

भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान तिहाड़ में लगभग छह महीने तक जेल में रहे थे। गोयल तब दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्र थे।

गोयल ने कहा कि उनके पिता (जनसंघ के वरिष्ठ नेता) चरती लाल गोयल को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया और उन्होंने 19 महीने अंबाला जेल में बिताए।

गोयल ने आपातकाल को याद करते हुए कहा, ‘‘जब आपातकाल घोषित किया गया तो कुछ पुलिसकर्मियों ने रात में हमारे दरवाजे पर दस्तक दी। जब वे मेरे पिता को गिरफ्तार करने आए, तो हमने सोचा कि ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि वे (इंदिरा) गांधी और कांग्रेस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल थे। हमने सोचा कि वे उन्हें गिरफ्तार करेंगे और कुछ दिनों में रिहा कर देंगे।’’ लेकिन अगली सुबह उन्हें पता चला कि देश में आपातकाल लगा दिया गया है।

उस समय दिवंगत अरुण जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। गोयल ने कहा कि (वरिष्ठ पत्रकार) रजत शर्मा और वह दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित विरोध प्रदर्शनों में शामिल रहे थे।

गोयल ने उस दौर को याद करते हुए बताया कि वह किस तरह पुलिस से बचने के लिए छतों से कूदकर भाग रहे थे। कैसे लोगों को जेलों में प्रताड़ित किया गया।

उन्होंने बताया कि वे लगातार अपना ठिकाना बदलते रहते थे और अक्सर पुलिस से बचने के लिए खुले में सोते थे। उन्होंने बताया कि अंत में पार्टी नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों में शामिल लोगों को समर्पण करने की सलाह दी।

उस समय तक रजत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे, उन्हें पीटा गया लेकिन रजत शर्मा ने गोयल के ठिकाने को लेकर जुबान नहीं खोली।

9 दिसंबर, 1975 को गोयल तथा अन्य लोगों ने लॉ फैकल्टी चौक पर प्रदर्शन किया।

गोयल ने बताया,‘‘ हम लोग एक काफी हाउस की कच्ची छत पर चढ़ गए और वहां से नारे लगाए – भारत माता की जय, हटाओ एमरजेंसी।’ पुलिस छत पर चढ़ने से डर रही थी कि कहीं छत न गिर जाए लेकिन आखिर में उन्होंने हमें गिरफ्तार कर लिया।’’

गोयल ने कहा, ‘‘मुझे तिहाड़ जेल भेज दिया गया और डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत बैरक नंबर 13 में रखा गया।’’ वह अगले छह महीनों तक जेल में रहे।

उन्होंने बताया कि कैदी अक्सर खराब भोजन को लेकर थालियां बजा बजाकर विरोध जताते थे और इसके लिए उन्हें पीटा जाता था। बीमार कैदियों को पैरोल नहीं दी गई। लेकिन पुलिस स्टेशन में जेलों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रताड़ना दी जाती थी।

लेकिन ऐसे माहौल में भी हौंसले बुलंद रखने के लिए कैदियों द्वारा कविता पाठ, पेंटिंग और बैडमिंटन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं। गोयल बताते हैं, ‘‘ हम एक दूसरे का हौंसला बढ़ाते- इससे हमें मानसिक रूप से मजबूत बने रहने में मदद मिली।’’

वरिष्ठ भाजपा नेता ने फाइल के पन्ने पलटते हुए अपने पिता को जेल में रहते हुए लिखे गए पत्र दिखाए। उन्होंने बताया, ‘‘ तिहाड़ जेल से मेरे पत्र सेंसर होकर अंबाला जाते थे। हमें कोड भाषा में लिखना पड़ता था। परिजनों से मुलाकात हमेशा संभव नहीं थी। भावनात्मक रूप से बहुत मुश्किल दौर था।’’

वह कहते हैं, ‘‘ आपातकाल ने ना जाने कितनी जिंदगियों को तबाह कर दिया। लोगों को भयानक तरीके से प्रताड़ित किया जाता था। उनके बाल और नाखून खींचे जाते थे, बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया जाता, महिलाओं को भी यातनाएं दी जाती थीं।’’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व प्रचारक और राजनीतिक विचारक के एन गोविंदाचार्य ने आपातकाल को ‘अशुभ’ करार देते हुए कहा कि इस दौरान आरएसएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भाजपा के पूर्व पदाधिकारी ने कहा कि संघ परिवार ने उस आंदोलन को स्थिरता दी। उन्होंने ‘पीटीआई वीडियो’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘समुद्र मंथन के दौरान संतुलन कायम रखने के लिए जिस प्रकार कूर्म ने बासुकी नाग और मंदराचल पर्वत के साथ एक भूमिका अदा की, आपातकाल में वही भूमिका संघ की थी।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या आपातकाल के उद्देश्य पूरे हुए, गोविंदाचार्य ने कहा, ‘इसके विपरीत हुआ। सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन प्रतिबंधों का पालन नहीं हुआ।’

भाजपा विधायक एस सुरेश कुमार ने आपातकाल को याद करते हुए कहा कि उन्हें गिरफ्तार किया गया और इसके बाद बेंगलुरु के हाई ग्राउंड्स पुलिस थाने में उनके साथ क्रूरता की गई। सुरेश ने कहा कि इसके बाद उन्हें बेंगलुरु स्थित केंद्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने 15 महीने बिताए।

उन्होंने बताया कि 21 महीने के आपातकाल ने देश भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्रभावित किया और कर्नाटक इसका अपवाद नहीं था।

सुरेश कुमार ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘मैं पहली बार नवंबर 1975 में हवाई जहाज में सवार हुआ था।’’ लेकिन उन्होंने ‘एरोप्लेन’ (हवाई जहाज) सजा को स्पष्ट करते हुए कहा कि हवाई जहाज सवार व्यक्ति के हाथ पीछे की ओर बांधकर ऊपर की ओर उठा दिये जाते थे, जिससे असहनीय दर्द होता था।

कुमार ने जेल में बंद कैदियों के बीच प्रतिरोध की साझा भावना को याद करते हुए कहा, ‘बेंगलुरू जेल राजनीतिक विचार, लचीलेपन और अंतर-पार्टी संबंधों का एक अप्रत्याशित केंद्र बन गयी।’

इस दौरान जिन प्रमुख नेताओं को हिरासत में लिया गया, उनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल थे, जिन्हें बेंगलुरु में कैद किया गया था। अन्य राष्ट्रीय नेताओं के साथ उनकी गिरफ्तारी अधिनायकवाद के खिलाफ संघर्ष का एक निर्णायक अध्याय बन गई।

कुमार ने आपातकाल के दौरान संस्थागत मिलीभगत के बारे में आडवाणी की प्रसिद्ध टिप्पणी का हवाला देते हुए अपनी बात समाप्त की: ‘जब उनसे झुकने के लिए कहा गया, तो वे रेंगने लगे।’

भाषा

संतोष दिलीप नरेश

नरेश

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