मुंबई, 23 जून (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसदीय कूटनीति को आगे बढ़ाने की पैरवी करते हुए सोमवार को कहा कि भारत जल्द ही विभिन्न देशों की संसदों के साथ मैत्री समूह स्थापित करेगा।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों ने हाल में विश्व के कई प्रमुख देशों के दौरे किए थे और उस दौरान अंतर-संसदीय मैत्री समूह स्थापित करने का सुझाव भी सामने आया था।
बिरला ने यहां संसद और राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के विधान मंडलों की प्राक्कलन समितियों के राष्ट्रीय सम्मेलन के मौके पर संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम संसदीय मैत्री समूह स्थापित करने पर काम कर रहे हैं क्योंकि कई देशों ने इस तरह का अनुरोध किया है।’’
कांग्रेस नेता शशि थरूर, द्रमुक नेता कनिमोझी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) नेता सुप्रिया सुले जैसे विपक्षी नेताओं के नेतृत्व में सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों 33 देशों की राजधानियों की यात्रा की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन प्रतिनिधिमंडलों के सदस्यों से मुलाकात की, जिन्होंने प्रधानमंत्री को संसदीय मैत्री समूहों के तंत्र को संस्थागत बनाने के लिए कई देशों द्वारा व्यक्त की गई इच्छा से अवगत कराया।
समझा जाता है कि प्रधानमंत्री विभिन्न मुद्दों पर भारत के संदेश को दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाने के लिए संसदीय कूटनीति के एक हिस्से के रूप में संसदीय मैत्री समूहों को संस्थागत बनाने के विचार से सहमत हो गए हैं।
बिरला ने कहा कि वह जल्द ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ इस विषय पर चर्चा करेंगे और सुझाव को आगे बढ़ाने के तौर-तरीके तैयार करेंगे।
प्राक्कलन समितियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए, बिरला ने ऐसे तंत्रों के बेहतर कामकाज के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग की जोरदार वकालत की, जिसका उद्देश्य शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है।
सम्मेलन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर, महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष राम शिंदे और महाराष्ट्र विधान परिषद की उपाध्यक्ष नीलम गोरे सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
बिरला ने इस बात का उल्लेख किया कि अधिकतर राज्य विधानसभाएं अपने दैनिक कामकाज में बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही हैं और कागज रहित हो गई हैं।
लोकसभा अध्यक्ष के अनुसार, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि प्राक्कलन समिति की कार्यवाही सहभागितापूर्ण हो, जिसमें अधिकारियों के साथ व्यापक परामर्श हो ताकि ऐसे निकायों द्वारा की गई अधिकांश सिफारिशें सरकार द्वारा स्वीकार कर ली जाएं।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने प्राक्कलन संबंधी समिति द्वारा की गई 97 प्रतिशत सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, जबकि हिमाचल प्रदेश ने केवल 15 प्रतिशत सुझावों को स्वीकार किया है।
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