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मुंबई, 23 जून (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग से संबंधित मामला अभी संसद में नहीं आया है, इसलिए इस मुद्दे पर टिप्पणी करने का कोई मतलब नहीं है।
बिरला ने यहां एक सम्मेलन के इतर संवाददाताओं से कहा, ‘‘जब यह मुद्दा संसद के समक्ष लाया जाएगा तो हम इस पर चर्चा कर सकते हैं। जो मामला सदन के समक्ष आया नहीं है, उस पर बात करने का कोई मतलब नहीं है।’’
भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने नकदी बरामदगी मामले में न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। न्यायमूर्ति खन्ना की रिपोर्ट मामले की जांच करने वाले तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति के निष्कर्षों पर आधारित थी।
न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के इस्तीफे पर जोर दिया था, लेकिन वर्मा ने इनकार कर दिया।
महाभियोग का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी लाया जा सकता है।
राज्यसभा में प्रस्ताव पर कम से कम 50 सदस्यों का हस्ताक्षर होना चाहिए। लोकसभा में 100 सदस्यों को इसका समर्थन करना होगा।
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन-सदस्यीय समिति का गठन करेंगे, जो उन आधारों की पड़ताल करेगी, जिनके तहत न्यायाधीश को हटाने (या महाभियोग) की मांग की गई है।
समिति में प्रधान न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से किसी एक के मुख्य न्यायाधीश तथा एक ‘‘प्रतिष्ठित न्यायविद’’ शामिल होते हैं।
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा।
मार्च में, राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना में आवास के बाहरी हिस्से में नकदी से भरी कई जली हुई बोरियां पाई गई थीं। उस समय वह दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।
न्यायाधीश ने नकदी के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें दोषी करार दिया।
इसके बाद, उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।
भाषा आशीष सुभाष
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