हैदराबाद, 23 जून (भाषा) हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने सोमवार को कहा कि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक ‘काला दौर’ था जब संवैधानिक अधिकारों को कुचला गया था।
इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 1975 में आपातकाल लगाने की 50वीं वर्षगांठ से पहले दत्तात्रेय ने गिरफ्तारी से बचने और कारावास के अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए। आपातकाल लगाए जाने के समय दत्तात्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी थे।
दत्तात्रेय ने ‘पीटीआई-वीडियो से बातचीत में कहा, “25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के समय उन्हें गिरफ्तारी से बचने के निर्देश दिए गए थे, क्योंकि कई कार्यकर्ताओं को पहले ही हिरासत में ले लिया गया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘(आपातकाल के दौरान) लोकतंत्र की रक्षा करने वाले संविधान के सभी नियमों को कुचल दिया गया।’’
हरियाणा के राज्यपाल ने बताया कि अधिकारियों से बचने के लिए वह भूमिगत हो गए थे और उन्होंने सूट और टाई पहनकर नया रूप धारण कर लिया तथा अपना नाम भी बदलकर ‘धर्मेन्द्र’ रख लिया था।
दत्तात्रेय ने बताया कि भूमिगत रहते हुए उनकी मुख्य भूमिका आपातकाल के विरुद्ध विभिन्न स्थानों पर कार्यकर्ताओं को संगठित करना, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा गिरफ्तार नेताओं के परिवारों को सहायता प्रदान करना था।
राज्यपाल ने बताया कि एक बार वह और उनके साथी कार्यकर्ताओं ने एक मंदिर के पास सत्यनारायण पूजा की आड़ में एक गुप्त राजनीतिक बैठक आयोजित करने की कोशिश की थी।
दत्तात्रेय ने बताया कि जैसे ही पुलिस मौके पर पहुंची, वह और त्रिपुरा के वर्तमान राज्यपाल एन इंद्रसेन रेड्डी 20 फुट ऊंची दीवार फांदकर भागने में सफल रहे।
हरियाणा के राज्यपाल ने बताया कि दीवार फांदने के दौरान रेड्डी को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन उनके पैर में चोट लग गई और अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत हैदराबाद के चंचलगुडा जेल में बंद कर दिया गया, जहां पर और भी कई राजनीतिक कैदी बंद थे।
दत्तात्रेय ने बताया कि कारागार में बंद रहने के दौरान उन्हें अपने बड़े भाई की मौत की खबर मिली। हरियाणा के राज्यपाल ने बताया कि अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए उन्हें पैरोल पर रिहा किया और उस दौरान एक रिश्तेदार ने सलाह दी कि वह सरकार को लिखित में यह कहकर अपनी रिहाई सुनिश्चित करें कि फिर से ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे।
दत्तात्रेय ने बताया लेकिन मां से मिले प्रोत्साहन ने इस कार्य के प्रति प्रतिबद्ध रहने के उनके संकल्प को और मजबूत कर दिया।
भाषा धीरज प्रशांत
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