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Tuesday, June 24, 2025

आपातकाल में फिल्म इंडस्ट्री पर सेंसरशिप की मार, किशोर कुमार और ‘आंधी’ पर लगा था बैन

Fast Newsआपातकाल में फिल्म इंडस्ट्री पर सेंसरशिप की मार, किशोर कुमार और 'आंधी' पर लगा था बैन

नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) आपातकाल का समय फिल्म उद्योग के लिए बहुत उतार-चढ़ाव वाला था जहां रचनात्मकता के साथ ही सेंसरशिप भी चरम पर थी।

उसी दौर की बात है जब अभिनेता और गायक किशोर कुमार को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से प्रतिबंधित कर दिया गया था, फिल्म ‘आंधी’ को रिलीज होने के बाद बड़े पर्दे से हटा दिया गया और राजनीतिक व्यंग्य पर आधारित ‘किस्सा कुर्सी का’ कभी रिलीज नहीं हो सकी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जिससे देश में उथल-पुथल मच गई। ये उपाय सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं थे, बल्कि मनोरंजन क्षेत्र ने भी सरकार के दमन की मार झेली और जिन्होंने हुक्म की तामील नहीं की, उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ा।

ये 21 महीने बहुत कठिन थे। 21 मार्च, 1977 को आपातकाल हटा दिया गया। इसी दौरान देव आनंद ने सत्ता के विरोध में अपनी खुद की पार्टी, नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया की शुरुआत की।

गैर-राजनीतिक फिल्मी सितारों ने उस समय जनता पार्टी का जोरदार समर्थन किया, जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा, प्राण, विजय आनंद और डैनी डेन्जोंगपा जैसे कलाकारों ने अपनी आवाज उठायी।

फिल्म इतिहासकार और लेखक एस एम एम औसजा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘आपातकाल के दौरान, फिल्म उद्योग एकजुट होकर सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया… कम से कम फिल्म उद्योग के प्रमुख लोगों में सरकार के सामने खड़े होने और यह कहने की हिम्मत थी कि आप जो कर रहे हैं वह सही नहीं है।’’

साल 2003 में रीडर्स डाइजेस्ट को दिए गए एक साक्षात्कार में, देव आनंद ने बताया था कि कैसे उन्हें संजय गांधी की प्रशंसा करने से इनकार करने के परिणाम भुगतने पड़े। उनकी फिल्मों को दूरदर्शन पर दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

अभिनेता ने कहा था, ‘‘उन्होंने किशोर कुमार के गानों को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि वह उनकी बात नहीं मानते थे। और उन्होंने हमें संजय गांधी की जय जयकार करने के लिए नयी दिल्ली बुलाया गया।’’

देव आनंद ने कहा था, ‘‘मैंने (तत्कालीन) सूचना मंत्री वीसी शुक्ला से मुलाकात की और उनसे कहा, ‘मैं तभी भाग लूंगा जब आप स्वीकार करेंगे कि हम अब एक पुलिस राज्य हैं’। उन्होंने कदम पीछे हटा लिए। फिर विपक्षी नेताओं ने समर्थन के लिए मुझसे संपर्क किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उनकी रैलियों में भाषण दिए और यहां तक ​​कि नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया (एनपीआई) का गठन भी किया।’’

आपातकाल समाप्त होने के बाद, अभिनेता ने अपनी पार्टी को भंग कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा कि वह जनता गठबंधन से निराश हो गए थे।

औसजा ने कहा कि यह अवधि सिनेमा के क्षेत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मुश्किल वाली थी।

उन्होंने बताया कि गुलजार की ‘आंधी’ 1975 में फरवरी में रिलीज़ हुई थी, लेकिन आपातकाल लागू होने के तुरंत बाद जुलाई में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। इसमें अभिनेता संजीव कुमार थे और सुचित्रा सेन ने एक महत्वाकांक्षी महिला नेता की भूमिका निभाई थी, जिसके बालों में इंदिरा गांधी की तरह एक सफेद लकीर थी।

फिल्म निर्माता अमृत नाहटा की व्यंग्यात्मक फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ सिनेमाघरों तक पहुंच ही नहीं पाई जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों की आलोचना की गई थी।

इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के करीबी नेता और तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री शुक्ला ने फिल्म के निगेटिव को नष्ट करा दिया और इसके प्रिंट जब्त करा लिए।

इस फिल्म में संजय गांधी से मिलते-जुलते पात्र का नाम गंगाराम था और यह उस समय की राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य थी।

सत्तारूढ़ कांग्रेस के सदस्य नाहटा आपातकाल के बाद जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने फिल्म का रीमेक बनाया और इसे 1978 में रिलीज किया। हालांकि, इस संस्करण को भी सेंसरशिप का सामना करना पड़ा।

नाहटा के बेटे राकेश ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘उन्होंने मेरे पिता को बहुत प्रताड़ित किया। उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां मिलीं। फिल्म की शूटिंग हो गई और सब कुछ पूरा हो गया। जब फिल्म सेंसर बोर्ड में जमा की गई, तो लड़ाई शुरू हो गई।’’

उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली में, इसे मावलंकर ऑडिटोरियम में दिखाया गया। संजय गांधी और वीसी शुक्ला ने फिल्म देखी। उसके बाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव ने हमें बताया कि यह पास नहीं होगी। उन्होंने कहा कि वे फिल्म पर प्रतिबंध लगा देंगे क्योंकि यह देश के खिलाफ है।’’

अपनी मधुर आवाज के लिए लोकप्रिय किशोर कुमार तब सरकार के निशाने पर आ गए जब उन्होंने 1976 में सरकार के बीस सूत्री कार्यक्रम की प्रशंसा करने के लिए ‘गीतों भरी शाम’ में भाग लेने से इनकार कर दिया था।

अनिरुद्ध भट्टाचार्य और पार्थिव धर की किताब ‘किशोर कुमार: द अल्टीमेट बायोग्राफी’ के अनुसार, संजय गांधी चाहते थे कि कुमार सरकार और उसकी योजनाओं की प्रशंसा में गीत गाएं। इसलिए, उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक अधिकारी ने फोन करके कार्यक्रम के लिए दिल्ली आने को कहा।

कुमार ने बाद में प्रीतीश नंदी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘कोई भी मुझसे मेरी मर्जी के खिलाफ काम नहीं करवा सकता। मैं किसी की इच्छा या आदेश पर नहीं गाता।’

गायक को मनाने की बहुत कोशिश की गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्हें असहयोगी करार दिया गया और सरकार ने तीन महीने के लिए ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर उनके गानों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। बाद में यह तय हुआ कि अगर उनकी आवाज़ का इस्तेमाल करना भी है तो उनका नाम नहीं लिया जाएगा।

जिस वर्ष आपातकाल लगाया गया था, उसी वर्ष ‘शोले’, ‘दीवार’, ‘निशांत’, ‘चुपके-चुपके’, ‘जूली’ और ‘जय संतोषी मां’ भी रिलीज हुईं।

फिल्म विद्वान, क्यूरेटर, लेखक और इतिहासकार अमृत ​​गंगर बताते हैं, ‘‘यह सिर्फ़ हिंदी सिनेमा की बात नहीं थी। 1975 की कन्नड़ फ़िल्म ‘चंदा मारुथा’ के निर्माताओं को आपातकाल के कारण नुकसान उठाना पड़ा। पी लंकेश के नाटक ‘क्रांति बंटू क्रांति’ पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन पट्टाभि राम रेड्डी ने किया था और इसमें उनकी पत्नी स्नेहलता रेड्डी ने काम किया था। स्नेहलता को जेल में डाल दिया गया और पैरोल पर रिहा होने के पाँच दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।

औसजा ने कहा कि आपातकाल आज की सरकार के लिए एक सबक होना चाहिए।

भाषा धीरज मनीषा वैभव नरेश

नरेश

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