(नेहा मिश्रा)
नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) एम.आर. वाधवा 1975 में मथुरा रोड पर एक परियोजना पर काम कर रहे थे, तभी उन्हें एक पत्र मिला, जिसमें उन्हें और 15 अन्य इंजीनियरों को एक रैंक से पदावनत कर दिया गया था। यह आपातकाल का प्रत्यक्ष परिणाम था।
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के सेवानिवृत्त इंजीनियर वाधवा (89) ने कहा कि पत्र ने सब कुछ बदल दिया। वह उन लोगों में शामिल थे जो सत्ता में बैठे लोगों द्वारा कायम की गई नौकरशाही के मकड़जाल में फंस गए थे।
उन्होंने कहा, ‘हर कोई राजनीतिक नेताओं के इशारे पर नाच रहा था।’
वाधवा ने कहा कि पदावनत करना आपातकाल के दौर के निर्देशों का सीधा परिणाम था। उनके मुताबिक, ‘यह मनोबल तोड़ने वाला था। हमने कुछ भी गलत नहीं किया था, लेकिन हमें दंडित किया गया। इस तरह आपातकाल हम तक पहुंचा।’
सितंबर 1961 में एमसीडी में नौकरी शुरू करने वाले वाधवा निगम के‘सिटी जोन’ में तैनात थे और तुर्कमान गेट ध्वस्तीकरण में शामिल अधिकारियों में से एक थे। अप्रैल 1976 में संजय गांधी के शहरी सौंदर्यीकरण मिशन के तहत पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में अचानक और बलपूर्वक बेदखली अभियान चलाया गया था।
उन्होंने माना कि आपातकाल की गयी कुछ पहल अच्छी थीं, लेकिन उन्हें लागू करने का तरीका बहुत ही खराब था। उन्होंने कहा, ‘वहां अराजकता थी। लोगों को रातों-रात बेदखल कर दिया गया।’
वाधवा ने कहा कि ऐसी स्थितियों में अधिकारियों को पूरी तरह से दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि दबाव उच्चतम स्तर से आता था। कई निर्णय बिना किसी औपचारिक लिखित आदेश के लिए गए थे – अधिकारी केवल मौखिक निर्देशों का पालन कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘चूंकि प्रशासन संजय गांधी जैसे लोगों के इशारे पर नाच रहा था, जो उस समय शक्तिशाली व्यक्ति थे, तो अधिकारी क्या कर सकते थे?’
वाधवा ने यह भी कहा कि तुर्कमान गेट का ध्वस्तीकरण कोई योजनाबद्ध कदम नहीं था।
उन्होंने कहा, ‘तुर्कमान गेट, नया बाजार, चांदनी चौक, जामा मस्जिद और मटिया महल सभी घनी आबादी वाले इलाके थे। एक दिन संजय गांधी वहां से गुजरे और उन्होंने तुर्कमान गेट की ओर इशारा किया। अगले ही दिन तोड़फोड़ शुरू हो गई और कुछ ही दिनों में इलाका खाली करा दिया गया।’
वाधवा ने कहा ‘तत्कालीन आयुक्त बी आर टम्टा जैसे लोग केवल राजनीतिक प्राधिकारियों आदेशों का पालन कर रहे थे। हम भी ऐसा ही कर रहे थे। हमारे वरिष्ठ अधिकारी आंख मूंदकर राजनीतिक नेताओं का अनुसरण कर रहे थे, और हमसे भी यही अपेक्षा की जा रही थी।’
देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था।
भाषा नोमान माधव
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