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Wednesday, June 25, 2025

‘न्याय का उपहास’: जमानत आदेश के बावजूद व्यक्ति को रिहा नहीं करने पर न्यायालय ने जेलर को तलब किया

News‘न्याय का उपहास’: जमानत आदेश के बावजूद व्यक्ति को रिहा नहीं करने पर न्यायालय ने जेलर को तलब किया

नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण प्रतिषेध कानून के तहत एक मामले में उसने अप्रैल महीने में जिस व्यक्ति को जमानत दी थी उसे अभी तक जेल से रिहा नहीं किया जाना ‘न्याय का उपहास’ है।

न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने व्यक्ति द्वारा किये गये इस दावे का संज्ञान लिया जिसमें कहा गया कि उसे इस आधार पर जमानत पर रिहा नहीं किया गया कि जमानत आदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्मांतरण प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के प्रावधान की एक उपधारा का उल्लेख नहीं किया गया था।

इसलिए पीठ ने गाजियाबाद जिला कारागार के अधीक्षक जेलर को 25 जून को अदालत के समक्ष प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि यह मामला ‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य’ प्रस्तुत करता है। पीठ ने उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि 29 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्ति को जमानत दिए जाने के बाद, 27 मई को गाजियाबाद की एक अधीनस्थ अदालत ने जेल अधीक्षक को रिहाई आदेश प्रेषित किया गया था। इस आदेश में कहा गया था कि आरोपी को निजी मुचलका भरने पर हिरासत से रिहा कर दिया जाए, बशर्ते उसे किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की आवश्यकता न हो।

पीठ ने कहा, ” इस आदेश के बाद, याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे रिहा नहीं किया जा सका क्योंकि (इलाहाबाद)उच्च न्यायालय और इस न्यायालय के आदेश में उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 5 की उपधारा (1) को छोड़ दिया गया था। इसी कारण याचिकाकर्ता को रिहा नहीं किया जा सका। ”

उच्चतम न्यायालय ने 29 अप्रैल के आदेश को ‘स्पष्ट’ बताया और कहा कि अपीलकर्ता को 3 जनवरी 2024 को गाज़ियाबाद के एक पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी की जांच के दौरान सुनवाई अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अब 29 अप्रैल के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया है ताकि 2021 के अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (1) को विशेष रूप से शामिल किया जा सके।

पीठ ने कहा, ”जैसा कि पहले कहा गया था, 29 अप्रैल, 2025 के आदेश में संबंधित धाराएं स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं। यह न्याय का उपहास है कि केवल इस आधार पर कि उपधारा का उल्लेख नहीं किया गया, याचिकाकर्ता… अब तक जेल में है। इसके लिए गंभीर जांच होनी चाहिए।”

हालांकि, खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को कोई भी गलत बयान देने को लेकर आगाह किया।

मामले की अगली सुनवाई 25 जून को होगी।

भाषा संतोष पवनेश

पवनेश

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