नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को एक कथित अपहरण मामले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक जवान को तीन जुलाई तक गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया है, बशर्ते आरोपी जांच में शामिल हो।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ साकेत थाने द्वारा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 140(2) (हत्या के इरादे से या फिरौती के लिए अपहरण) के तहत दर्ज मामले में एक सीआरपीएफ जवान की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने 23 जून को कहा, “याचिकाकर्ता (जवान) को सुनवाई की अगली तारीख तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बशर्ते वह जांच में शामिल हो और पूरी तरह से सहयोग करे। याचिकाकर्ता को निर्देश दिया जाता है कि वह 24 जून को शाम पांच बजे जांच अधिकारी (आईओ) के समक्ष उपस्थित हो तथा जब भी आईओ द्वारा आगे बुलाया जाए, वह उपस्थित हो।”
अभियोजन पक्ष को तीन जुलाई को होने वाली सुनवाई से दो दिन पहले स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है।
अदालत ने जवान के वकील की दलीलों पर गौर किया, जिन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल और कथित रूप से अपहृत व्यक्ति करीब डेढ़ साल से दोस्त थे और वह चार जून को स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के साथ कश्मीर गया था।
अदालत ने कहा, “उन्होंने (वकील ने) कहा है कि पीड़ित ने स्वयं सात जून को कठुआ, जम्मू कश्मीर में जांच अधिकारी के समक्ष लिखित रूप से कहा था कि याचिकाकर्ता ने उसका अपहरण नहीं किया था और फिरौती की कोई मांग नहीं की गई थी…. उन्होंने कहा कि स्पष्ट रूप से गलतफहमी हुई है।”
दूसरी ओर, अभियोजक ने तर्क दिया कि पीड़ित ने 14 जून को अपना बयान बदलते हुए दूसरा बयान दर्ज कराया था और कहा था कि जवान ने उसका अपहरण किया था।
अदालत ने कहा, “उन्होंने (अभियोजक ने) कहा है कि शिकायतकर्ता यानी पीड़ित की पत्नी को मिले व्हाट्सएप चैट से भी पत्नी से फिरौती की मांग का सबूत मिलता है। उन्होंने कहा है कि याचिकाकर्ता तीन जून से फरार है।”
भाषा प्रशांत अविनाश
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