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Wednesday, June 25, 2025

जापानी प्रधानमंत्री का नाटो शिखर सम्मेलन में नहीं जाना अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव का संकेत

Newsजापानी प्रधानमंत्री का नाटो शिखर सम्मेलन में नहीं जाना अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव का संकेत

( क्रेग मार्क, सहायक व्याख्याता, होसेई विश्वविद्यालय )

तोक्यो, 25 जून (द कन्वरसेशन) जापानी प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने अमेरिका के ट्रंप प्रशासन को स्पष्ट संकेत दिया है: जापान-अमेरिका संबंध बहुत गंभीर स्थिति में हैं।

कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि वह इस सप्ताह हेग में होने वाले नाटो शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे, लेकिन अंतिम समय में उन्होंने अचानक अपना नाम वापस ले लिया।

शिगेरु इशिबा के अलावा भारत-प्रशांत क्षेत्र के दो अन्य नेता- आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग भी शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं।

जापानी मीडिया के मुताबिक, इशिबा ने अपनी यात्रा इसलिए रद्द की क्योंकि उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात होने की उम्मीद नहीं थी और इंडो-पैसिफिक फोर (आईपी4) साझेदार (ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान) की बैठक भी शायद नहीं होती।

फिर भी जापान का प्रतिनिधित्व उसके विदेश मंत्री ताकेशी इवाया करेंगे, जो नाटो के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने की इच्छा दर्शाएंगे।

हालांकि, इशिबा के इस बैठक में शामिल नहीं होने से यह पता चलता है कि वाशिंगटन द्वारा जापान पर भारी शुल्क लगाने के बाद जापान ट्रंप प्रशासन के साथ अपने संबंधों को किस तरह देखता है।

ट्रंप की शुल्क नीति अमेरिका और जापान के बीच दरार का मूल कारण है। इशिबा ने ट्रंप प्रशासन के साथ संबंधों को अच्छी शुरुआत देने का प्रयास किया। वे इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बाद व्हाइट हाउस में ट्रंप से मिलने वाले दूसरे वैश्विक नेता थे।

हालांकि, ट्रंप द्वारा लगाए गए ‘लिबरेशन डे’ शुल्क में जापानी कारों पर 25 प्रतिशत और अन्य सभी जापानी सामानों पर 24 प्रतिशत का भारी शुल्क लगाया है। इनका जापान की अर्थव्यवस्था पर पहले से ही नकारात्मक असर पड़ रहा है: मई में अमेरिका को भेजी गई जापानी कारों का निर्यात पिछले साल की तुलना में 25 प्रतिशत कम हो गया।

अब तक छह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन बहुत कम प्रगति हुई है, क्योंकि इशिबा की सरकार सभी शुल्क से पूरी छूट पर जोर दे रही है।

ट्रंप प्रशासन जापान पर रक्षा खर्च बढ़ाने का दबाव बना रहा है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक खबर के अनुसार, इसी मांग को लेकर तोक्यो ने अमेरिका और जापान के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली एक बैठक रद्द कर दी। (हालांकि, एक जापानी अधिकारी ने इस खबर से इनकार किया।)

सप्ताह की शुरुआत में अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों का जापान ने पूरा समर्थन नहीं किया। जापान के विदेश मंत्री ने सिर्फ इतना कहा कि जापान ‘समझता है’ कि अमेरिका ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना चाहता है।

जापान और ईरान के संबंध पारंपरिक रूप से अच्छे रहे हैं। जापान अक्सर पश्चिम और ईरान के बीच एक सेतु का काम करता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2019 में ईरान की यात्रा भी की थी।

जापान अब भी पश्चिम एशिया के तेल पर काफी निर्भर है। अगर ईरान ने होरमुज जलडमरूमध्य को बंद कर दिया होता, जिसकी वह धमकी दे रहा था, तो जापान की ऊर्जा आपूर्ति पर बड़ा असर पड़ता।

ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने हमलों का समर्थन किया, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया के विपरीत इशिबा सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी। जापान चाहता है कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया को बल प्रयोग और क्षेत्रीय आक्रामकता के वैश्विक नियमों को इसी तरह कमजोर करने का कोई मौका न मिले।

जापान-अमेरिका सैन्य साझेदारी की रणनीतिक दुविधा:

जापान भी उसी दुविधा का सामना कर रहा है जो अमेरिका के अन्य सहयोगी कर रहे हैं – ट्रंप की ‘‘अमेरिका पहले’’ नीति के चलते अमेरिका अब एक भरोसेमंद साझेदार नहीं रह गया है।

इस साल की शुरुआत में ट्रंप ने जापान-अमेरिका सुरक्षा समझौते को ‘एकतरफा’ बताया था। उन्होंने जापान के बारे में कहा था, ‘‘अगर हम पर हमला होता है, तो जापान को हमारी रक्षा के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ेगा।’’

हालांकि, निचले स्तर पर जापान, अमेरिका और उनके क्षेत्रीय साझेदारों (जैसे फिलीपीन) के बीच सुरक्षा सहयोग जारी है। इस हफ्ते जापानी जल क्षेत्र में अमेरिका, जापान और फिलीपीन के कोस्ट गार्ड ने साझा अभ्यास किया। अमेरिका जापान की मिसाइल क्षमताओं को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है।

फिर भी जापान अब अमेरिका से आगे बढ़कर नाटो, यूरोपीय संघ, भारत, फिलीपीन, वियतनाम और आसियान देशों के साथ सुरक्षा संबंध मजबूत कर रहा है। वह दक्षिण कोरिया के साथ अपने नाजुक संबंधों को भी बनाए रखना चाहता है।

ऑस्ट्रेलिया अब जापान का सबसे भरोसेमंद सुरक्षा साझेदार माना जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया जापानी युद्धपोत मोगानी क्लास फ्रिगेट खरीदने पर विचार कर रहा है। अगर अमेरिका और ब्रिटेन के बीच एयूकेयूएस समझौता (अमेरिका-ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया सुरक्षा समझौता) विफल होता है, तो जापानी पनडुब्बियां विकल्प हो सकती हैं।

घरेलू राजनीति में इशिबा पर दबाव:

प्रधानमंत्री इशिबा पर देश के अंदर भी काफी दबाव है कि वे ट्रंप के सामने झुकें नहीं, क्योंकि ट्रंप जापानी जनता में काफी अलोकप्रिय हैं।

पिछले सितंबर में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के नेता के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की जगह लेने के बाद, पार्टी ने संसद के निचले सदन में अपना बहुमत खो दिया। इससे उसे विधायी समर्थन के लिए छोटी पार्टियों पर निर्भर होना पड़ा।

इशिबा सरकार की लोकप्रियता लगातार गिर रही है। महंगाई, जीवन-यापन की लागत बढ़ने, वेतन नहीं बढ़ने और पुराने राजनीतिक घोटालों को लेकर जनता में असंतोष है, साथ ही वैश्विक हालात भी अस्थिर हैं।

(द कन्वरसेशन) अमित मनीषा

मनीषा

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