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Thursday, June 26, 2025

आरोपी को जमानत पर रिहा करने में देरी पर उत्तर प्रदेश के जेल अधिकारियों को न्यायालय की फटकार

Newsआरोपी को जमानत पर रिहा करने में देरी पर उत्तर प्रदेश के जेल अधिकारियों को न्यायालय की फटकार

नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने धर्मांतरण रोधी कानून के तहत दर्ज मामले में 29 अप्रैल को जमानत पाने वाले एक आरोपी को रिहा करने में देरी के लिए बुधवार को उत्तर प्रदेश के जेल अधिकारियों को फटकार लगाई और सरकार को उसे पांच लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि स्वतंत्रता संविधान के तहत प्रदत्त एक ‘‘बहुत मूल्यवान ’’ अधिकार है और व्यक्ति ने अकारण कम से कम 28 दिनों के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी।

आरोपी को 29 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय से जमानत मिल गई थी और उसके बाद 27 मई को गाजियाबाद की एक निचली अदालत ने रिहाई का आदेश जारी किया था।

बुधवार को शीर्ष अदालत को बताया गया कि व्यक्ति को 24 जून को जिला जेल गाजियाबाद से रिहा कर दिया गया।

पीठ ने इस आधार पर व्यक्ति की जमानत पर रिहाई में इतने लंबे समय तक देरी पर कड़ी आपत्ति जताई कि जमानत आदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के एक प्रावधान की उपधारा का उल्लेख नहीं किया गया था।

पीठ ने उत्तर प्रदेश की ओर से उपस्थित वकील से कहा, ‘‘भगवान जानता है कि अदालती आदेशों के बावजूद कितने लोग आपकी जेलों में सड़ रहे हैं।’’

पीठ ने 29 अप्रैल के आदेश में संशोधन का अनुरोध करने वाले व्यक्ति की याचिका पर आदेश पारित किया ताकि 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) को विशेष रूप से शामिल किया जा सके।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अधिकारियों को पता था कि संबंधित धारा क्या थी और उन्होंने ही निचली अदालत के समक्ष सुधार के लिए आवेदन किया था। पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में, अकारण याचिकाकर्ता ने कम से कम 28 दिन के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी।

पीठ ने कहा, ‘‘अब इस स्थिति को सुधारने का एकमात्र तरीका अस्थायी मुआवजे का आदेश देना है, जो कि अनंतिम प्रकृति का होगा। हम उत्तर प्रदेश राज्य को पांच लाख रुपये का भुगतान करने और शुक्रवार (27 जून) को इस अदालत को अनुपालन की रिपोर्ट देने का आदेश देते हैं।’’

पीठ ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (जेल) से बातचीत की, जो वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित हुए, तथा गाजियाबाद जेल के अधीक्षक से भी बातचीत की, जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए।

पीठ ने कहा, ‘‘हम केवल यही उम्मीद करते हैं कि कोई अन्य दोषी/विचाराधीन कैदी ऐसी ही तकनीकी वजहों से जेलों में बंद न हो।’’

पीठ ने डीजीपी के इस आश्वासन को भी दर्ज किया कि वह अपने अधीनस्थों को न्यायालय के आदेशों का सम्मान करने और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी के महत्व के बारे में जागरूक करेंगे।

पीठ को बताया गया कि डीजीपी ने मामले में दोषी पाए गए अधिकारियों या कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए जांच शुरू कर दी है और पुलिस उप महानिरीक्षक (जेल) को यह कार्य सौंपा गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि इस मामले की जांच पुलिस उपमहानिरीक्षक (जेल) द्वारा करने के बजाय वर्तमान में पद पर आसीन जिला न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए।’’

पीठ ने गाजियाबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को जांच करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

पीठ ने उल्लेख किया कि सरकार द्वारा दिया गया कारण 2021 अधिनियम की धारा 5 की उप-धारा (1) का उल्लेख नहीं किया जाना था।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘क्या यही वास्तविक कारण था या कुछ और था, इसकी भी जांच की जाएगी। जिला न्यायाधीश यह भी जांच करेंगे कि क्या इस प्रकरण में जेल अधिकारियों की ओर से कोई लापरवाही बरती गई और यदि कोई एक या कई अधिकारी जिम्मेदार हैं, तो जिला न्यायाधीश इसके लिए जिम्मेदारी तय करेंगे।’’

व्यक्ति पर तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना आदि) और 2021 अधिनियम की धारा 3 और 5 (गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्म परिवर्तन का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

भाषा आशीष माधव

माधव

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