इंदौर, 25 जून (भाषा) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कांग्रेस को चुनौती देते हुए बुधवार को कहा कि वह मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मसले को लेकर विचाराधीन मामले में विवादित स्थल पर भगवान कृष्ण का मंदिर बनाए जाने की मांग के पक्ष में अदालत में हलफनामा पेश करे।
यादव ने आपातकाल की 50वीं बरसी पर भाजपा द्वारा इंदौर में आयोजित संगोष्ठी में कहा, ‘‘कांग्रेस नेता कहते हैं कि भगवान राम तो उनके भी हैं और वे भी राम की बात करते हैं, लेकिन हमें मालूम है कि कांग्रेस ने राम मंदिर आंदोलन को किस तरह नीचा दिखाने की कोशिश की थी।’’
यादव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर बन चुका है, लेकिन मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि का मामला अदालत में विचाराधीन है।
उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस में दम है, तो वह अदालत में आए और शपथपत्र पेश करके कहे कि अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद मथुरा के विवादित स्थल पर भी भगवान कृष्ण का मंदिर बनना चाहिए।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित है जिसके बारे में हिंदू पक्ष का दावा है कि इसे भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।
मुख्यमंत्री यादव ने कांग्रेस पर लोकतंत्र के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के राज में कांग्रेस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह पर 10 साल तक ताला लगा कर रखा था।’’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सांसद और इस दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने भी संगोष्ठी में हिस्सा लिया।
उन्होंने आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं पर भयावह अत्याचारों का हवाला देते हुए कहा कि उस दौर में नागरिक अधिकारों का जबर्दस्त दमन किया गया था।
त्रिवेदी ने दावा किया कि आपातकाल लगाने से पहले ही इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर के प्रशासन की नाजीवादी विचारधारा से ‘‘प्रेरित’’ होकर अलग-अलग व्यवस्थाओं पर योजनाबद्ध नियंत्रण हासिल करना शुरू कर दिया था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा चुनाव हारने पर निर्वाचन आयोग के खिलाफ सवाल उठाती है और लोकतंत्र का मजाक उड़ाने का प्रयास करती है।
इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाया था। इस दौरान नागरिक अधिकारों को निलंबित करते हुए विपक्षी नेताओं और असंतुष्ट लोगों को जेल में बंद कर दिया गया था और प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई थी।
भाषा हर्ष खारी
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