पुरी, 27 जून (भाषा) पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देब ने शुक्रवार को श्रद्धालुओं द्वारा रथ खींचने से पहले भगवान जगन्नाथ और उनके दो भाई-बहनों के रथों के फर्श को साफ करने की ‘छेरा पहरा’ रस्म अदा की।
सफेद रंग के वस्त्र पहने और चांदी की परत चढ़ी पालकी में सवार होकर पुरी के प्रतीकात्मक राजा रथों तक पहुंचे। इसके बाद, उन्होंने सोने के हैंडल वाली झाड़ू से रथों के फर्श को साफ किया। इस दौरान, पुजारी मंत्रोच्चार कर रहे थे और उन पर पुष्प और सुगंधित जल छिड़क रहे थे। उन्होंने देवताओं की आरती भी की।
गजपति महाराज को भगवान जगन्नाथ का पहला सेवक माना जाता है और इसलिए वह ‘छेरा पहरा’ अनुष्ठान करते हैं, जो शाही अनुष्ठान का भी हिस्सा है।
रथ यात्रा से एक दिन पहले गजपति ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह मेरे और मेरे परिवार के लिए ईश्वरीय आशीर्वाद है कि हमें भगवान जगन्नाथ की सेवा करने और रथ यात्रा के दौरान उनके रथ की सफाई करने का अवसर मिला है।’’
गजपति द्वारा ‘छेरा पहरा’ अनुष्ठान भी ‘स्नान पूर्णिमा’ (भगवान का स्नान अनुष्ठान) और बाहुदा यात्रा (वापसी उत्सव) के अवसर पर किया जाता है।
गजपति ने सबसे पहले भगवान बलभद्र के रथ ‘तालध्वज’, फिर भगवान जगन्नाथ के ‘नदिघोष’ और अंत में देवी सुभद्रा के ‘दर्पदलन’ की पूजा की।
परंपरा के अनुसार, पुरी के प्रतीकात्मक राजा को मंदिर के अधिकारियों द्वारा विशेष रूप से नियुक्त एक दूत के माध्यम से देवताओं के रथों पर अपना स्थान लेने की सूचना दी जाती है।
मंदिर के अभिलेखों के अनुसार, 12वीं शताब्दी में अनंतवर्मन चोडगंगदेव से शुरू होकर उड़ीसा के शासकों ने खुद को भगवान जगन्नाथ का ‘‘रौता’’ (सेवक) घोषित किया था और उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन किया था।
राजा द्वारा रथों या ‘छेरा पहरा’ की सफाई करने और महल में जाने के बाद, लकड़ी के घोड़ों – भूरा रंग (देवी सुभद्रा रथ के लिए), काला (भगवान बलभद्र) और सफेद (भगवान जगन्नाथ रथ) को तीनों रथों में लगाया जाता है और श्रद्धालुओं द्वारा खींचा जाता है।
जगन्नाथ संप्रदाय के शोधकर्ता भास्कर मिश्रा ने बताया कि महाराज द्वारा रथों की सफाई करने की रस्म यह संदेश देती है कि भगवान के समक्ष सभी समान हैं।
भाषा सुभाष पवनेश
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